अष्ट द्रव्य पूजा: Difference between revisions
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< | <p> <span class="GRef"> महापुराण/38/27-29 </span><span class="SanskritGatha"> तत्र नित्यमहो नाम शश्वज्जिनग्रहं प्रति। स्वगृहान्नीयमानार्चा गंधपुष्पाक्षतादिका। 27। चैत्यचैत्यालयादीनां भक्त्या निर्मापणं च यत्। शासनीकृत्य दानं च ग्रामादीनां सदार्चनम्। 28। या च पूजाः मुनींद्राणां नित्यदानानुषंगिणी। स च नित्यमहो ज्ञेयो यथाशक्त्युपकल्पितः। 29। </span> = <span class="HindiText">प्रतिदिन अपने घर से गंध, पुष्प, अक्षत आदि ले जाकर जिनालय में श्री जिनेंद्र देव की पूजा करना सदार्चन अर्थात् नित्यमह कहलाता है। 27। अथवा भक्तिपूर्वक अर्हंत देव की प्रतिमा और मंदिर का निर्माण कराना तथा दानपत्र लिखकर ग्राम, खेत आदि का दान भी देना सदार्चन कहलाता है। 28। इसके सिवाय अपनी शक्ति के अनुसार नित्यदान देते हुए महामुनियों की जो पूजा की जाती है, उसे भी नित्यमह समझना चाहिए। 29। </p> | ||
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Latest revision as of 11:20, 23 December 2022
महापुराण/38/27-29 तत्र नित्यमहो नाम शश्वज्जिनग्रहं प्रति। स्वगृहान्नीयमानार्चा गंधपुष्पाक्षतादिका। 27। चैत्यचैत्यालयादीनां भक्त्या निर्मापणं च यत्। शासनीकृत्य दानं च ग्रामादीनां सदार्चनम्। 28। या च पूजाः मुनींद्राणां नित्यदानानुषंगिणी। स च नित्यमहो ज्ञेयो यथाशक्त्युपकल्पितः। 29। = प्रतिदिन अपने घर से गंध, पुष्प, अक्षत आदि ले जाकर जिनालय में श्री जिनेंद्र देव की पूजा करना सदार्चन अर्थात् नित्यमह कहलाता है। 27। अथवा भक्तिपूर्वक अर्हंत देव की प्रतिमा और मंदिर का निर्माण कराना तथा दानपत्र लिखकर ग्राम, खेत आदि का दान भी देना सदार्चन कहलाता है। 28। इसके सिवाय अपनी शक्ति के अनुसार नित्यदान देते हुए महामुनियों की जो पूजा की जाती है, उसे भी नित्यमह समझना चाहिए। 29।
पूजा के अन्य भेद एवं विशेष जानकारी हेतु देखें पूजा ।