मुंडशालायन: Difference between revisions
From जैनकोष
m (Vikasnd moved page मुण्डशालायन to मुंडशालायन: RemoveFifthCharsTitles) |
(Imported from text file) |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> भद्रिलपुर नगर के ब्राह्मण भूतिशर्मा और उसकी स्त्री कमला का पुत्र । | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> भद्रिलपुर नगर के ब्राह्मण भूतिशर्मा और उसकी स्त्री कमला का पुत्र । हरिवंशपुराण के अनुसार इसकी माँ का नाम कपिला था । मलय देश के राजा मेघरथ के मंत्री द्वारा शास्त्रदान, अभयदान और अन्नदान करने के लिए कहे जाने पर इसने विरोध करते हुए मेघरथ को उक्त तीनों दान मुनियों और दरिद्रियों के लिए ठीक तथा राजाओं के लिए अनुपयुक्त बताये थे । इसने कन्यादान, हस्तिदान, स्वर्णदान, अश्वदान, गोदान, दासीदान, तिलदान, रथदान, भूमिदान और गृहदान ये दस प्रकार के दान चलाये थे । इसका अभिमत था कि तप क्लेश व्यर्थ है । जिनके पास धन नहीं है ऐसे साहसी मूर्ख मनुष्यों ने ही परलोक के लिए इस तप के क्लेश की कल्पना की है । वास्तव में पृथिवीदान, स्वर्णदान आदि से ही सुख प्राप्त होता है । सम्यकदान का विरोध करने और मिथ्यादानों का प्रचार करने से अंत में मरकर वह सातवें नरक गया तथा वहाँ से निकलकर तिर्यंचगति में भटकता रहा । <span class="GRef"> महापुराण 56.66-27, 80-81, 96, 71. 304-308, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 11-14</span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ मीनार्या | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ मुकुंद | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
भद्रिलपुर नगर के ब्राह्मण भूतिशर्मा और उसकी स्त्री कमला का पुत्र । हरिवंशपुराण के अनुसार इसकी माँ का नाम कपिला था । मलय देश के राजा मेघरथ के मंत्री द्वारा शास्त्रदान, अभयदान और अन्नदान करने के लिए कहे जाने पर इसने विरोध करते हुए मेघरथ को उक्त तीनों दान मुनियों और दरिद्रियों के लिए ठीक तथा राजाओं के लिए अनुपयुक्त बताये थे । इसने कन्यादान, हस्तिदान, स्वर्णदान, अश्वदान, गोदान, दासीदान, तिलदान, रथदान, भूमिदान और गृहदान ये दस प्रकार के दान चलाये थे । इसका अभिमत था कि तप क्लेश व्यर्थ है । जिनके पास धन नहीं है ऐसे साहसी मूर्ख मनुष्यों ने ही परलोक के लिए इस तप के क्लेश की कल्पना की है । वास्तव में पृथिवीदान, स्वर्णदान आदि से ही सुख प्राप्त होता है । सम्यकदान का विरोध करने और मिथ्यादानों का प्रचार करने से अंत में मरकर वह सातवें नरक गया तथा वहाँ से निकलकर तिर्यंचगति में भटकता रहा । महापुराण 56.66-27, 80-81, 96, 71. 304-308, हरिवंशपुराण 60. 11-14