अनुंधरी: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) घातकीखंड द्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन की रानी । <span class="GRef"> महापुराण </span>में राजा का नाम विश्वदेव और रानी का नाम अनुंदरी कहा गया है । अयोध्या के राजा पद्मसेन द्वारा अपने पति के युद्ध में मारे जाने पर यह अति व्याकुलित हुई । सुमति मंत्री द्वारा संबोधे जाने पर भी मोह के कारण यह सम्यग्दर्शन को प्राप्त न कर सकी । अंत में यह अग्नि में प्रवेश कर मरी और मरकर विजयार्ध पर्वत पर विजय नामक व्यंतर देव की ज्वलनवेगा नाम की व्यंतरी हुई । <span class="GRef"> महापुराण </span>71. 387-389, हपू0 60.57-61</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) घातकीखंड द्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन की रानी । <span class="GRef"> महापुराण </span>में राजा का नाम विश्वदेव और रानी का नाम अनुंदरी कहा गया है । अयोध्या के राजा पद्मसेन द्वारा अपने पति के युद्ध में मारे जाने पर यह अति व्याकुलित हुई । सुमति मंत्री द्वारा संबोधे जाने पर भी मोह के कारण यह सम्यग्दर्शन को प्राप्त न कर सकी । अंत में यह अग्नि में प्रवेश कर मरी और मरकर विजयार्ध पर्वत पर विजय नामक व्यंतर देव की ज्वलनवेगा नाम की व्यंतरी हुई । <span class="GRef"> महापुराण </span>71. 387-389, हपू0 60.57-61</p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में चंद्रपुर नगर के राजा महेंद्र की रानी, कनकमाला की जननी । इसका अपरनाम अनुंदरी था । <span class="GRef"> महापुराण </span>71. 405-406, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.80-82 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में चंद्रपुर नगर के राजा महेंद्र की रानी, कनकमाला की जननी । इसका अपरनाम अनुंदरी था । <span class="GRef"> महापुराण </span>71. 405-406, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#80|हरिवंशपुराण - 60.80-82]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) वज्रजंघ की छोटी बहिन, वज्रबाहू की पुत्री | <p id="3" class="HindiText">(3) वज्रजंघ की छोटी बहिन, वज्रबाहू की पुत्री तथा अमिततेज की पत्नी । <span class="GRef"> महापुराण </span>8.33</p> | ||
<p id="4">(4) हस्तिनापुर के निवासी द्विज कपिष्ठल की पत्नी, गौतम की जननी । <span class="GRef"> महापुराण </span>70.160-161</p> | <p id="4" class="HindiText">(4) हस्तिनापुर के निवासी द्विज कपिष्ठल की पत्नी, गौतम की जननी । <span class="GRef"> महापुराण </span>70.160-161</p> | ||
<p id="5">(5) पोदनपुर नगर निवासी, वेदशास्त्रज्ञ विश्वभूति ब्राह्मण की भार्या, कमठ और मरुभूत नामक पुत्रों की जननी । <span class="GRef"> महापुराण </span>73.6-9 </p> | <p id="5" class="HindiText">(5) पोदनपुर नगर निवासी, वेदशास्त्रज्ञ विश्वभूति ब्राह्मण की भार्या, कमठ और मरुभूत नामक पुत्रों की जननी । <span class="GRef"> महापुराण </span>73.6-9 </p> | ||
<p id="6">(6) सुग्रीव की पुत्री । राम के गुणों को सुनकर स्वयंवरण की इच्छा से अपनी अन्य बारह बहिनों के साथ यह राम के निकट आयी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 47.136-144 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) सुग्रीव की पुत्री । राम के गुणों को सुनकर स्वयंवरण की इच्छा से अपनी अन्य बारह बहिनों के साथ यह राम के निकट आयी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_47#136|पद्मपुराण - 47.136-144]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
(1) घातकीखंड द्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा विश्वसेन की रानी । महापुराण में राजा का नाम विश्वदेव और रानी का नाम अनुंदरी कहा गया है । अयोध्या के राजा पद्मसेन द्वारा अपने पति के युद्ध में मारे जाने पर यह अति व्याकुलित हुई । सुमति मंत्री द्वारा संबोधे जाने पर भी मोह के कारण यह सम्यग्दर्शन को प्राप्त न कर सकी । अंत में यह अग्नि में प्रवेश कर मरी और मरकर विजयार्ध पर्वत पर विजय नामक व्यंतर देव की ज्वलनवेगा नाम की व्यंतरी हुई । महापुराण 71. 387-389, हपू0 60.57-61
(2) विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में चंद्रपुर नगर के राजा महेंद्र की रानी, कनकमाला की जननी । इसका अपरनाम अनुंदरी था । महापुराण 71. 405-406, हरिवंशपुराण - 60.80-82
(3) वज्रजंघ की छोटी बहिन, वज्रबाहू की पुत्री तथा अमिततेज की पत्नी । महापुराण 8.33
(4) हस्तिनापुर के निवासी द्विज कपिष्ठल की पत्नी, गौतम की जननी । महापुराण 70.160-161
(5) पोदनपुर नगर निवासी, वेदशास्त्रज्ञ विश्वभूति ब्राह्मण की भार्या, कमठ और मरुभूत नामक पुत्रों की जननी । महापुराण 73.6-9
(6) सुग्रीव की पुत्री । राम के गुणों को सुनकर स्वयंवरण की इच्छा से अपनी अन्य बारह बहिनों के साथ यह राम के निकट आयी थी । पद्मपुराण - 47.136-144