अभयघोष: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) मनोरमा का पिता, सुविधि का मामा-ससुर । यह चक्रवर्ती राजा था । <span class="GRef"> महापुराण 10. 143 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) मनोरमा का पिता, सुविधि का मामा-ससुर । यह चक्रवर्ती राजा था । <span class="GRef"> महापुराण 10. 143 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक केवली-तृतीय चक्रवर्ती मघवा का दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 61. 88, 97 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक केवली-तृतीय चक्रवर्ती मघवा का दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 61. 88, 97 </span></p> | ||
<p id="3">(3) घातकीखंड द्वीप के तिलकनगर का नृप । इसकी रानी सुवर्णतिलका से उत्पन्न विजय तथा जयंत नाम के दो पुत्र थे । विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित मंदारनगर के राजा शंख की पुत्री पृथिवीतिलका इसकी दूसरी रानी थी । इस रानी से अपमानिता सुवर्णतिलका अपने दोनों पुत्रों के साथ अनंतग्राम के मुनि के पास दीक्षित हो गयी थी । तीनों महाव्रत धारण कर आयु के अंत में समाधिमरण पूर्वक अच्युत स्वर्ग में देव हुए । <span class="GRef"> महापुराण 63.168-178 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) घातकीखंड द्वीप के तिलकनगर का नृप । इसकी रानी सुवर्णतिलका से उत्पन्न विजय तथा जयंत नाम के दो पुत्र थे । विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित मंदारनगर के राजा शंख की पुत्री पृथिवीतिलका इसकी दूसरी रानी थी । इस रानी से अपमानिता सुवर्णतिलका अपने दोनों पुत्रों के साथ अनंतग्राम के मुनि के पास दीक्षित हो गयी थी । तीनों महाव्रत धारण कर आयु के अंत में समाधिमरण पूर्वक अच्युत स्वर्ग में देव हुए । <span class="GRef"> महापुराण 63.168-178 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
(1) मनोरमा का पिता, सुविधि का मामा-ससुर । यह चक्रवर्ती राजा था । महापुराण 10. 143
(2) एक केवली-तृतीय चक्रवर्ती मघवा का दीक्षागुरु । महापुराण 61. 88, 97
(3) घातकीखंड द्वीप के तिलकनगर का नृप । इसकी रानी सुवर्णतिलका से उत्पन्न विजय तथा जयंत नाम के दो पुत्र थे । विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित मंदारनगर के राजा शंख की पुत्री पृथिवीतिलका इसकी दूसरी रानी थी । इस रानी से अपमानिता सुवर्णतिलका अपने दोनों पुत्रों के साथ अनंतग्राम के मुनि के पास दीक्षित हो गयी थी । तीनों महाव्रत धारण कर आयु के अंत में समाधिमरण पूर्वक अच्युत स्वर्ग में देव हुए । महापुराण 63.168-178