अहिंसा महाव्रत: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> प्रथम महाव्रत । काय, इंद्रियाँ, गुणस्थान, जीवस्थान, कुल, और आयु के भेद तथा योनियों के नाना विकल्पों का आगमरूपी चक्षु के द्वारा अच्छी तरह अवलोकन करके बैठने-उठने आदि क्रियाओं मे छ: काय के जीवों के वध-बंधन आदि का त्याग करना । इस महाव्रत की स्थिरता के लिए पाँच भावनाएं होती है वे हैं—सम्यक्वचनगुप्ति, सम्यग्ममोगुप्ति, आलोकित-पान-भोजन, ईर्यासमिति और आदान-निक्षेपण समिति । <span class="GRef"> महापुराण 20.161, 34.168-169, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.116-117,58.117-118, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 9.84 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> प्रथम महाव्रत । काय, इंद्रियाँ, गुणस्थान, जीवस्थान, कुल, और आयु के भेद तथा योनियों के नाना विकल्पों का आगमरूपी चक्षु के द्वारा अच्छी तरह अवलोकन करके बैठने-उठने आदि क्रियाओं मे छ: काय के जीवों के वध-बंधन आदि का त्याग करना । इस महाव्रत की स्थिरता के लिए पाँच भावनाएं होती है वे हैं—सम्यक्वचनगुप्ति, सम्यग्ममोगुप्ति, आलोकित-पान-भोजन, ईर्यासमिति और आदान-निक्षेपण समिति । <span class="GRef"> महापुराण 20.161, 34.168-169, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#116|हरिवंशपुराण - 2.116-117]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#117|58.117-118]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 9.84 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Latest revision as of 21:10, 17 February 2024
प्रथम महाव्रत । काय, इंद्रियाँ, गुणस्थान, जीवस्थान, कुल, और आयु के भेद तथा योनियों के नाना विकल्पों का आगमरूपी चक्षु के द्वारा अच्छी तरह अवलोकन करके बैठने-उठने आदि क्रियाओं मे छ: काय के जीवों के वध-बंधन आदि का त्याग करना । इस महाव्रत की स्थिरता के लिए पाँच भावनाएं होती है वे हैं—सम्यक्वचनगुप्ति, सम्यग्ममोगुप्ति, आलोकित-पान-भोजन, ईर्यासमिति और आदान-निक्षेपण समिति । महापुराण 20.161, 34.168-169, हरिवंशपुराण - 2.116-117, 58.117-118, पांडवपुराण 9.84