अंधकवृष्टि: Difference between revisions
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<p> हरिवंश में उत्पन्न, शौर्यपुर नगर के राजा सूरसेन का पौत्र और राजा शूरवीर तथा उसकी रानी धारिणी का पुत्र, नरवृष्टि का अग्रज । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>मे अंधकवृष्टि को अंधकवृष्णि कहा है । रानी सुप्रभा से उसके दस पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई थीं । उसके पुत्रों के नाम थे― समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव तथा पुत्रियाँ थी कुंती और मद्री । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>में अक्षोभ्य का नाम नहीं आया है । वहाँ पूरितार्थीच्छ नाम मिलता है जो हरिवंश पुराण में अप्राप्त है । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>मे जिसे अभिचंद्र कहा गया है <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>में उसे अभिनंदन नाम दिया गया है । इसी प्रकार मद्री को माद्री कहा गया है । इसके छोटे भाई के दो नाम थे― नरवृष्टि और भोजकवृष्णि । उग्रसेन, देवसेन और महासेन इसके पुत्र तथा गांधारी इसकी पुत्री थी । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>70.93-101 <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>189-16 अंत मे सुप्रतिष्ठ केवली से अपने पूर्वभव सुनकर इसने समुद्रविजय को राज्य दे दिया और अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर की । उग्र तपस्या करके इसने मोक्ष प्राप्त कर लिया । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>70.212-214, <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>18. 176, 178, <span class="GRef"> पांडवपुराण 11.4 </span>चौथे पूर्वभव में यह अयोध्या निवासी रुद्रदत्त नाम का ब्राह्मण था, तीसरे पूर्वभव में रौरव नरक मे जन्मा, नरक से निकलकर दूसरे पूर्वभव में हस्तिनापुर में ब्राह्मण कापिष्ठलायन का गौतम नामक पुत्र हुआ और पचास हजार वर्ष के कठोर तप के प्रभाव से मरण कर पहले पूर्वभव में यह देव हुआ । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>18.78-109, <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>मे इसके अनेक बार तिर्यंच योनि में जन्म लेने और मरकर अनेक बार नरक में जाने के उल्लेख है । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>70.145-181</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> हरिवंश में उत्पन्न, शौर्यपुर नगर के राजा सूरसेन का पौत्र और राजा शूरवीर तथा उसकी रानी धारिणी का पुत्र, नरवृष्टि का अग्रज । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>मे अंधकवृष्टि को अंधकवृष्णि कहा है । रानी सुप्रभा से उसके दस पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई थीं । उसके पुत्रों के नाम थे― समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव तथा पुत्रियाँ थी कुंती और मद्री । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>में अक्षोभ्य का नाम नहीं आया है । वहाँ पूरितार्थीच्छ नाम मिलता है जो हरिवंश पुराण में अप्राप्त है । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>मे जिसे अभिचंद्र कहा गया है <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>में उसे अभिनंदन नाम दिया गया है । इसी प्रकार मद्री को माद्री कहा गया है । इसके छोटे भाई के दो नाम थे― नरवृष्टि और भोजकवृष्णि । उग्रसेन, देवसेन और महासेन इसके पुत्र तथा गांधारी इसकी पुत्री थी । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>70.93-101 <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>189-16 अंत मे सुप्रतिष्ठ केवली से अपने पूर्वभव सुनकर इसने समुद्रविजय को राज्य दे दिया और अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर की । उग्र तपस्या करके इसने मोक्ष प्राप्त कर लिया । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>70.212-214, <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>18. 176, 178, <span class="GRef"> पांडवपुराण 11.4 </span>चौथे पूर्वभव में यह अयोध्या निवासी रुद्रदत्त नाम का ब्राह्मण था, तीसरे पूर्वभव में रौरव नरक मे जन्मा, नरक से निकलकर दूसरे पूर्वभव में हस्तिनापुर में ब्राह्मण कापिष्ठलायन का गौतम नामक पुत्र हुआ और पचास हजार वर्ष के कठोर तप के प्रभाव से मरण कर पहले पूर्वभव में यह देव हुआ । <span class="GRef"> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span> </span>18.78-109, <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>मे इसके अनेक बार तिर्यंच योनि में जन्म लेने और मरकर अनेक बार नरक में जाने के उल्लेख है । <span class="GRef"> <span class="GRef"> <span class="GRef"> महापुराण </span> </span> </span>70.145-181</p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
हरिवंश में उत्पन्न, शौर्यपुर नगर के राजा सूरसेन का पौत्र और राजा शूरवीर तथा उसकी रानी धारिणी का पुत्र, नरवृष्टि का अग्रज । हरिवंशपुराण मे अंधकवृष्टि को अंधकवृष्णि कहा है । रानी सुप्रभा से उसके दस पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई थीं । उसके पुत्रों के नाम थे― समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव तथा पुत्रियाँ थी कुंती और मद्री । महापुराण में अक्षोभ्य का नाम नहीं आया है । वहाँ पूरितार्थीच्छ नाम मिलता है जो हरिवंश पुराण में अप्राप्त है । हरिवंशपुराण मे जिसे अभिचंद्र कहा गया है महापुराण में उसे अभिनंदन नाम दिया गया है । इसी प्रकार मद्री को माद्री कहा गया है । इसके छोटे भाई के दो नाम थे― नरवृष्टि और भोजकवृष्णि । उग्रसेन, देवसेन और महासेन इसके पुत्र तथा गांधारी इसकी पुत्री थी । महापुराण 70.93-101 हरिवंशपुराण 189-16 अंत मे सुप्रतिष्ठ केवली से अपने पूर्वभव सुनकर इसने समुद्रविजय को राज्य दे दिया और अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर की । उग्र तपस्या करके इसने मोक्ष प्राप्त कर लिया । महापुराण 70.212-214, हरिवंशपुराण 18. 176, 178, पांडवपुराण 11.4 चौथे पूर्वभव में यह अयोध्या निवासी रुद्रदत्त नाम का ब्राह्मण था, तीसरे पूर्वभव में रौरव नरक मे जन्मा, नरक से निकलकर दूसरे पूर्वभव में हस्तिनापुर में ब्राह्मण कापिष्ठलायन का गौतम नामक पुत्र हुआ और पचास हजार वर्ष के कठोर तप के प्रभाव से मरण कर पहले पूर्वभव में यह देव हुआ । हरिवंशपुराण 18.78-109, महापुराण मे इसके अनेक बार तिर्यंच योनि में जन्म लेने और मरकर अनेक बार नरक में जाने के उल्लेख है । महापुराण 70.145-181