आजीविका: Difference between revisions
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<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/4/56-57 </span><span class="SanskritGatha">यतित्वं जीवनोपायं कुर्वंत: किं न लज्जित:। मातु: पण्यमिवालंब्य यथा केचिद्गतघृणा:।56। निस्त्रपा: कर्म कुर्वंति यतित्वेऽप्यतिनिंदितम्। ततो विराध्य सन्मार्गं विशंति नरकोदरे।57।</span> = <span class="HindiText">कई निर्दय निर्लज्ज साधुपन में भी अतिशय निंदा योग्य कार्य करते हैं। वे समीचीन मार्ग का विरोध करके नरक में प्रवेश करते हैं। जैसे कोई अपनी माता को वेश्या बनाकर उससे धनोपार्जन करते हैं, तैसे ही जो मुनि होकर उस मुनिदीक्षा को जीवन का उपाय बनाते हैं, और उसके द्वारा धनोपार्जन करते हैं वे अतिशय निर्दय तथा निर्लज्ज हैं।56-57।</span></li> | |||
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<p class="HindiText">साधु को आजीविका करने का सर्वथा निषेध। देखें [[मंत्र#1.4 | मंत्र 1.4]]।</p> | |||
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Latest revision as of 19:28, 5 January 2023
ज्ञानार्णव/4/56-57 यतित्वं जीवनोपायं कुर्वंत: किं न लज्जित:। मातु: पण्यमिवालंब्य यथा केचिद्गतघृणा:।56। निस्त्रपा: कर्म कुर्वंति यतित्वेऽप्यतिनिंदितम्। ततो विराध्य सन्मार्गं विशंति नरकोदरे।57। = कई निर्दय निर्लज्ज साधुपन में भी अतिशय निंदा योग्य कार्य करते हैं। वे समीचीन मार्ग का विरोध करके नरक में प्रवेश करते हैं। जैसे कोई अपनी माता को वेश्या बनाकर उससे धनोपार्जन करते हैं, तैसे ही जो मुनि होकर उस मुनिदीक्षा को जीवन का उपाय बनाते हैं, और उसके द्वारा धनोपार्जन करते हैं वे अतिशय निर्दय तथा निर्लज्ज हैं।56-57।
साधु को आजीविका करने का सर्वथा निषेध। देखें मंत्र 1.4।