एवंभूत नय: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि/1/33/145/3</span> <span class="SanskritText"> येनात्मना भूतस्तेनैवाध्यवसायतीति एवंभूत:। स्वाभिप्रेतक्रियापरिणतिक्षणे एव स शब्दो युक्तो नान्यथेति। यदैवेंदति तदैवेंद्रो नाभिषेचको न पूजक इति। यदैव गच्छति तदैव गौर्न स्थितो न शयित इति।</span> =<span class="HindiText">जो वस्तु जिस पर्याय को प्राप्त हुई है उसी रूप निश्चय करने वाले (नाम देने वाले) नय को '''एवंभूत नय''' कहते हैं। आशय यह है कि जिस शब्द का जो वाच्य है उस रूप क्रिया के परिणमन के समय ही उस शब्द का प्रयोग करना युक्त है, अन्य समयों में नहीं। जैसे‒जिस समय आज्ञा व ऐश्वर्यवान् हो उस समय ही इंद्र है, अभिषेक या पूजा करने वाला नहीं। जब गमन करती हो तभी गाय है, बैठी या सोती हुई नहीं। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/90/3</span> <span class="SanskritText">एवं भेदे भवनादेवंभूत:। </span>=<span class="HindiText">एवंभेद अर्थात् जिस शब्द का जो वाच्य है वह तद्रूप क्रिया से परिणत समय में ही पाया जाता है। उसे जो विषय करता है उसे '''एवंभूतनय''' कहते हैं। </span><br /> | |||
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सर्वार्थसिद्धि/1/33/145/3 येनात्मना भूतस्तेनैवाध्यवसायतीति एवंभूत:। स्वाभिप्रेतक्रियापरिणतिक्षणे एव स शब्दो युक्तो नान्यथेति। यदैवेंदति तदैवेंद्रो नाभिषेचको न पूजक इति। यदैव गच्छति तदैव गौर्न स्थितो न शयित इति। =जो वस्तु जिस पर्याय को प्राप्त हुई है उसी रूप निश्चय करने वाले (नाम देने वाले) नय को एवंभूत नय कहते हैं। आशय यह है कि जिस शब्द का जो वाच्य है उस रूप क्रिया के परिणमन के समय ही उस शब्द का प्रयोग करना युक्त है, अन्य समयों में नहीं। जैसे‒जिस समय आज्ञा व ऐश्वर्यवान् हो उस समय ही इंद्र है, अभिषेक या पूजा करने वाला नहीं। जब गमन करती हो तभी गाय है, बैठी या सोती हुई नहीं।
धवला 1/1,1,1/90/3 एवं भेदे भवनादेवंभूत:। =एवंभेद अर्थात् जिस शब्द का जो वाच्य है वह तद्रूप क्रिया से परिणत समय में ही पाया जाता है। उसे जो विषय करता है उसे एवंभूतनय कहते हैं।
देखें नय - III.8।