काकतालीय न्याय: Difference between revisions
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द्रव्यसंग्रह टीका/35/144/1 <span class="SanskritText"> परं परं दुर्लभेषु कथंचित्काकतालीयन्यायेन लब्धेष्वपि ....परमसमाधिर्दुर्लभ:।</span>=<span class="HindiText">एकेंद्रियादि से लेकर अधिक अधिक दुर्लभ बातों को काकतालीय न्याय से अर्थात् बिना पुरूषार्थ के स्वत: ही प्राप्त कर भी ले तौ भी परम समाधि अत्यंत दुर्लभ है। | <span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/35/144/1 </span><span class="SanskritText"> परं परं दुर्लभेषु कथंचित्काकतालीयन्यायेन लब्धेष्वपि ....परमसमाधिर्दुर्लभ:।</span>=<span class="HindiText">एकेंद्रियादि से लेकर अधिक अधिक दुर्लभ बातों को काकतालीय न्याय से अर्थात् बिना पुरूषार्थ के स्वत: ही प्राप्त कर भी ले तौ भी परम समाधि अत्यंत दुर्लभ है। </span><br> | ||
<span class="GRef"> मोक्षमार्ग प्रकाशक/3/80/15 </span><br> | |||
<span class="HindiText">बहुरि काकतालीय न्यायकरि भवितव्य ऐसा ही होय और तातै कार्य की सिद्धि भी हो जाय। </span> | |||
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द्रव्यसंग्रह टीका/35/144/1 परं परं दुर्लभेषु कथंचित्काकतालीयन्यायेन लब्धेष्वपि ....परमसमाधिर्दुर्लभ:।=एकेंद्रियादि से लेकर अधिक अधिक दुर्लभ बातों को काकतालीय न्याय से अर्थात् बिना पुरूषार्थ के स्वत: ही प्राप्त कर भी ले तौ भी परम समाधि अत्यंत दुर्लभ है।
मोक्षमार्ग प्रकाशक/3/80/15
बहुरि काकतालीय न्यायकरि भवितव्य ऐसा ही होय और तातै कार्य की सिद्धि भी हो जाय।