आकस्मिक भय: Difference between revisions
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< | <span class="GRef">मूलाचार/53 </span> <span class="PrakritText">इहपरलोयत्ताणं अगुत्तिमरणं च वेयणाकिस्सि भया। </span>= <span class="HindiText">इहलोक भय, परलोक, अरक्षा, अगुप्ति, मरण, वेदना और '''आकस्मिक''' भय ये सात भय हैं।</span> | ||
[[Category:आ]] | <span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/ श्लोक नं.</span> <span class="SanskritGatha">भीतिर्भूयाद्यथा सौस्थ्यं माभूद्दौस्थ्यं कदापि मे। इत्येवं मानसी चिंता पर्याकुलितचेतसा।544।</span> <li class="HindiText">= अकस्मात् उत्पन्न होने वाला महान् दुःख '''आकस्मिक भय''' माना गया है। जैसे कि बिजली आदि के गिरने से प्राणियों का मरण हो जाता है।543। जैसे मैं सदैव नीरोग रहूँ, कभी रोगी न होऊँ, इस प्रकार व्याकुलित चित्तपूर्वक होने वाली चिंता <strong>आकस्मिक भीति</strong> कहलाती है।544।<br /> | ||
<p class="HindiText"> भय के सम्बन्ध में विशेष जानने हेतु देखें [[ भय ]]।</p> | |||
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Latest revision as of 16:05, 18 February 2023
मूलाचार/53 इहपरलोयत्ताणं अगुत्तिमरणं च वेयणाकिस्सि भया। = इहलोक भय, परलोक, अरक्षा, अगुप्ति, मरण, वेदना और आकस्मिक भय ये सात भय हैं।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/ श्लोक नं. भीतिर्भूयाद्यथा सौस्थ्यं माभूद्दौस्थ्यं कदापि मे। इत्येवं मानसी चिंता पर्याकुलितचेतसा।544।
भय के सम्बन्ध में विशेष जानने हेतु देखें भय ।