दिक्कुमारी: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> 1. आठ दिक्कुमारी देवियाँ नंदन वन में स्थित आठ कूटों पर रहती हैं–सुमेधा, मेघमालिनी, तोयंधरा, विचित्रा, मणिमालिनी, (पुष्पमाला) आनंदिता, मेघंकरी।–देखें [[ लोक#3.6.4 | लोक - 3.6.4]].4 व; [[लोक#7.44 |लोक - 7.44]] । दिक्कुमारी देवियाँ रुचक पर्वत के कूटों पर निवास करती हैं। जो गर्भ के समय भगवान् की माता की सेवा करती हैं।–देखें [[ लोक#4.7 | लोक - 4.7]]। कुछ अन्य देवियों के नाम निर्देश–जया, विजया, अजिता, अपराजिता, जंभा, मोहा, स्तंभा, स्तंभिनी। (प्रतिष्ठासारोद्धार/3/317-24)। श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, शांति व पुष्टि। <span class="GRef">(प्रतिष्ठासारोद्धार/4/27) </span>। </p> | |||
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<p> दिक्कुमारी देवों की देवियां । ये छप्पन है और मेरु तथा रुचकार पर्वत के कूटों पर निवास करती है । पूर्व दिशा के आठ कूटों पर विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता, नंदा, नंदोत्तरा, आनंदा और नंदीवर्धना देवियाँ रहती हैं । ये तीर्थंकरों के जन्मकाल में पूजा के निमित्त हाथ में दैदीप्यमान झारियाँ लिए हुए तीर्थंकर की माता के समीप रहती है । दक्षिण दिशा के आठ कूटों पर स्वस्थिता, सुप्रणिधि, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीमती, कीर्तिमती, वसुंधरा और चित्रादेवी रहती हैं । ये तीर्थंकरों के जन्म के समय संतुष्ट होकर आती है और मणिमय दर्पण धारणकर तीर्थंकरों की माता की सेवा करती है । पश्चिम दिशा की आठ देवियां है― इला, सुरा, पृथिवी, पद्मावती, कांचना, नवमिका, सीता और भद्रिका । ये देवियाँ तीर्थंकरों के जन्मकाल में शुक्ल छत्र धारण करती है । इसी प्रकार उत्तर के आठ कूटों पर भी आठ देवियाँ निवास करती है । वे हैं― लंबुसा, मिश्रकेशी, पुंडरीकिणी, वारुणी, आशा, ह्री, श्री और वृत्ति । ये हाथ में चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । इनके अतिरिक्त गंधमादन, माल्यवान्, सौमनस्य और विद्युत्प्रभ पर्वतों के मध्यवर्ती आठ कूटों पर रहने वाली आठ दिक्कुमारियाँ ये हैं― भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, वत्समिला, सुमित्रा, वारिषेणा और अचलवती । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.24,5.226-227, 704-717 </span>रुचकवर पर्वत की विदिशाओं के चार कूटों में रहने वाली आठ देवियाँ है― रुचका, विजयार्धदेवी, रुचकोज्ज्वला, वैजयंती, रुचकाभा, जयंती, रुचकप्रभा और अपराजिता । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.722-727 </span>चित्रा, कनकचित्रा, सूत्रामणि और त्रिशिरा ये चार विद्युत्कुमारियाँ तथा विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता से चार दिक्कुमारियां मिलकर तीर्थंकरों का जातकर्म करती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 8.106-117 </span>मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तीयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला अरि अनिंदिता ये आठ नंदनवन की दिक्कुमारियाँ है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.332-333 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> दिक्कुमारी देवों की देवियां । ये छप्पन है और मेरु तथा रुचकार पर्वत के कूटों पर निवास करती है । पूर्व दिशा के आठ कूटों पर विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता, नंदा, नंदोत्तरा, आनंदा और नंदीवर्धना देवियाँ रहती हैं । ये तीर्थंकरों के जन्मकाल में पूजा के निमित्त हाथ में दैदीप्यमान झारियाँ लिए हुए तीर्थंकर की माता के समीप रहती है । दक्षिण दिशा के आठ कूटों पर स्वस्थिता, सुप्रणिधि, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीमती, कीर्तिमती, वसुंधरा और चित्रादेवी रहती हैं । ये तीर्थंकरों के जन्म के समय संतुष्ट होकर आती है और मणिमय दर्पण धारणकर तीर्थंकरों की माता की सेवा करती है । पश्चिम दिशा की आठ देवियां है― इला, सुरा, पृथिवी, पद्मावती, कांचना, नवमिका, सीता और भद्रिका । ये देवियाँ तीर्थंकरों के जन्मकाल में शुक्ल छत्र धारण करती है । इसी प्रकार उत्तर के आठ कूटों पर भी आठ देवियाँ निवास करती है । वे हैं― लंबुसा, मिश्रकेशी, पुंडरीकिणी, वारुणी, आशा, ह्री, श्री और वृत्ति । ये हाथ में चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । इनके अतिरिक्त गंधमादन, माल्यवान्, सौमनस्य और विद्युत्प्रभ पर्वतों के मध्यवर्ती आठ कूटों पर रहने वाली आठ दिक्कुमारियाँ ये हैं― भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, वत्समिला, सुमित्रा, वारिषेणा और अचलवती । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#24|हरिवंशपुराण - 2.24]],5.226-227, 704-717 </span>रुचकवर पर्वत की विदिशाओं के चार कूटों में रहने वाली आठ देवियाँ है― रुचका, विजयार्धदेवी, रुचकोज्ज्वला, वैजयंती, रुचकाभा, जयंती, रुचकप्रभा और अपराजिता । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#722|हरिवंशपुराण - 5.722-727]] </span>चित्रा, कनकचित्रा, सूत्रामणि और त्रिशिरा ये चार विद्युत्कुमारियाँ तथा विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता से चार दिक्कुमारियां मिलकर तीर्थंकरों का जातकर्म करती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_8#106|हरिवंशपुराण - 8.106-117]] </span>मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तीयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला अरि अनिंदिता ये आठ नंदनवन की दिक्कुमारियाँ है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#332|हरिवंशपुराण - 5.332-333]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. आठ दिक्कुमारी देवियाँ नंदन वन में स्थित आठ कूटों पर रहती हैं–सुमेधा, मेघमालिनी, तोयंधरा, विचित्रा, मणिमालिनी, (पुष्पमाला) आनंदिता, मेघंकरी।–देखें लोक - 3.6.4.4 व; लोक - 7.44 । दिक्कुमारी देवियाँ रुचक पर्वत के कूटों पर निवास करती हैं। जो गर्भ के समय भगवान् की माता की सेवा करती हैं।–देखें लोक - 4.7। कुछ अन्य देवियों के नाम निर्देश–जया, विजया, अजिता, अपराजिता, जंभा, मोहा, स्तंभा, स्तंभिनी। (प्रतिष्ठासारोद्धार/3/317-24)। श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, शांति व पुष्टि। (प्रतिष्ठासारोद्धार/4/27) ।
पुराणकोष से
दिक्कुमारी देवों की देवियां । ये छप्पन है और मेरु तथा रुचकार पर्वत के कूटों पर निवास करती है । पूर्व दिशा के आठ कूटों पर विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता, नंदा, नंदोत्तरा, आनंदा और नंदीवर्धना देवियाँ रहती हैं । ये तीर्थंकरों के जन्मकाल में पूजा के निमित्त हाथ में दैदीप्यमान झारियाँ लिए हुए तीर्थंकर की माता के समीप रहती है । दक्षिण दिशा के आठ कूटों पर स्वस्थिता, सुप्रणिधि, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीमती, कीर्तिमती, वसुंधरा और चित्रादेवी रहती हैं । ये तीर्थंकरों के जन्म के समय संतुष्ट होकर आती है और मणिमय दर्पण धारणकर तीर्थंकरों की माता की सेवा करती है । पश्चिम दिशा की आठ देवियां है― इला, सुरा, पृथिवी, पद्मावती, कांचना, नवमिका, सीता और भद्रिका । ये देवियाँ तीर्थंकरों के जन्मकाल में शुक्ल छत्र धारण करती है । इसी प्रकार उत्तर के आठ कूटों पर भी आठ देवियाँ निवास करती है । वे हैं― लंबुसा, मिश्रकेशी, पुंडरीकिणी, वारुणी, आशा, ह्री, श्री और वृत्ति । ये हाथ में चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । इनके अतिरिक्त गंधमादन, माल्यवान्, सौमनस्य और विद्युत्प्रभ पर्वतों के मध्यवर्ती आठ कूटों पर रहने वाली आठ दिक्कुमारियाँ ये हैं― भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, वत्समिला, सुमित्रा, वारिषेणा और अचलवती । हरिवंशपुराण - 2.24,5.226-227, 704-717 रुचकवर पर्वत की विदिशाओं के चार कूटों में रहने वाली आठ देवियाँ है― रुचका, विजयार्धदेवी, रुचकोज्ज्वला, वैजयंती, रुचकाभा, जयंती, रुचकप्रभा और अपराजिता । हरिवंशपुराण - 5.722-727 चित्रा, कनकचित्रा, सूत्रामणि और त्रिशिरा ये चार विद्युत्कुमारियाँ तथा विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता से चार दिक्कुमारियां मिलकर तीर्थंकरों का जातकर्म करती है । हरिवंशपुराण - 8.106-117 मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तीयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला अरि अनिंदिता ये आठ नंदनवन की दिक्कुमारियाँ है । हरिवंशपुराण - 5.332-333