प्रारंभक्रिया: Difference between revisions
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<p> आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में एक क्रिया । इसमें दूसरों के द्वारा किये जाने वाले आरंभ में प्रमादी होकर स्वयं हर्ष मानना अथवा छेदन-भेदन आदि क्रियाओं में अत्यधिक तत्पर रहना समाविष्ट है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.79 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में एक क्रिया । इसमें दूसरों के द्वारा किये जाने वाले आरंभ में प्रमादी होकर स्वयं हर्ष मानना अथवा छेदन-भेदन आदि क्रियाओं में अत्यधिक तत्पर रहना समाविष्ट है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#79|हरिवंशपुराण - 58.79]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
आस्रव की पच्चीस क्रियाओं में एक क्रिया । इसमें दूसरों के द्वारा किये जाने वाले आरंभ में प्रमादी होकर स्वयं हर्ष मानना अथवा छेदन-भेदन आदि क्रियाओं में अत्यधिक तत्पर रहना समाविष्ट है । हरिवंशपुराण - 58.79