भवदेव: Difference between revisions
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<p id="1">(1) मृणालवती नगरी के सेठ सुकेतु और सेठानी कनकश्री का पुत्र । दुराचारी होने के कारण इसे ‘दुर्मुख’ कहते थे । यह इसी नगरी के सेठ श्रीदत्त की | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) मृणालवती नगरी के सेठ सुकेतु और सेठानी कनकश्री का पुत्र । दुराचारी होने के कारण इसे ‘दुर्मुख’ कहते थे । यह इसी नगरी के सेठ श्रीदत्त की पुत्रि रतिवेगा को विवाहना चाहता था । व्यापार के निमित्त बाहर जाने से श्रीदत्त ने अपनी पुत्री का विवाह इसके साथ न करके सुकांत से कर दिया । देशांतर से लौटने पर यह सब जानकर यह अति रुष्ट हुआ । झगड़े की संभावना के फलस्वरूप सुकांत अपनी वधू के साथ शोभानगर के सामंत शक्तिषेण की शरण में जा पहुंचा । यह निराश हो गया । अवसर मिलते ही इसने सुकांत और रतिवेगा दोनों को जला दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 46. 103-109, 134 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
(1) मृणालवती नगरी के सेठ सुकेतु और सेठानी कनकश्री का पुत्र । दुराचारी होने के कारण इसे ‘दुर्मुख’ कहते थे । यह इसी नगरी के सेठ श्रीदत्त की पुत्रि रतिवेगा को विवाहना चाहता था । व्यापार के निमित्त बाहर जाने से श्रीदत्त ने अपनी पुत्री का विवाह इसके साथ न करके सुकांत से कर दिया । देशांतर से लौटने पर यह सब जानकर यह अति रुष्ट हुआ । झगड़े की संभावना के फलस्वरूप सुकांत अपनी वधू के साथ शोभानगर के सामंत शक्तिषेण की शरण में जा पहुंचा । यह निराश हो गया । अवसर मिलते ही इसने सुकांत और रतिवेगा दोनों को जला दिया था । महापुराण 46. 103-109, 134
(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश के वृद्धग्राम के वैश्य राष्ट्रकूट का कनिष्ठ पुत्र और भगदत्त का अनुज । इसके बड़े भाई भगदत्त ने मुनि-दीक्षा ले ली थी । भगदत्त चाहता था कि वह भी संयम धारण कर ले । विवाह हो जाने से यह ऐसा नहीं कर पा रहा था । अत: मुनि भगदत्त ने इसे अपने गुरु के पास ले जाकर संयम धारण करा दिया था परंतु स्त्री-मोह के कारण यह संयम में स्थिर न रह सका । संयम में स्थिर करने के लिए गुणमती आर्यिका ने इसे कथाओं के माध्यम से समझाकर और इसकी पत्नी नागश्री इसे दिखाकर विरक्ति उत्पन्न की थी । यह भी संसार को स्थिति का स्मरण कर अपनी निंदा करता हुआ संयम में स्थिर हो गया और मृत्यु के पश्चात् भाई भगदत्त मुनिराज के साथ माहेंद्र स्वर्ग के बलभद्र नामक विमान में सात सागर की आयु का धारी । सामानिक देव हुआ । महापुराण 76. 152-200