भवविचय: Difference between revisions
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<p> धर्मध्यान के दस भेदों में सातवाँ भेद । चारों गतियों में श्रमण करने वाले जीवों को मरने के बाद जो पर्याय प्राप्त होती है उसे भव कहते हैं । यह भव दु:खरूप है― ऐसा चिंतन करना भवविचय धर्मध्यान है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.47, 52 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> धर्मध्यान के दस भेदों में सातवाँ भेद । चारों गतियों में श्रमण करने वाले जीवों को मरने के बाद जो पर्याय प्राप्त होती है उसे भव कहते हैं । यह भव दु:खरूप है― ऐसा चिंतन करना भवविचय धर्मध्यान है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#47|हरिवंशपुराण - 56.47]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#52|हरिवंशपुराण - 56.52]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
धर्मध्यान के दस भेदों में सातवाँ भेद । चारों गतियों में श्रमण करने वाले जीवों को मरने के बाद जो पर्याय प्राप्त होती है उसे भव कहते हैं । यह भव दु:खरूप है― ऐसा चिंतन करना भवविचय धर्मध्यान है । हरिवंशपुराण - 56.47,हरिवंशपुराण - 56.52