माली: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1"> (1) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह अलंकारपुर के राजा सुकेश और रानी इंद्राणी का ज्येष्ठ पुत्र तथा सुमाली और माल्यवान् का | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह अलंकारपुर के राजा सुकेश और रानी इंद्राणी का ज्येष्ठ पुत्र तथा सुमाली और माल्यवान् का बड़ा भाई था । इसके पूर्वज लंका के राजा थे किंतु वे क्रूर और बलवान् निर्वात विद्याधर के भय से अलंकारपुर में रहने लगे थे । इसने पिता के समक्ष चोटी खोलकर पूर्वजों का राज्य वापिस लेने की प्रतिज्ञा की दी । इस कार्य के लिए अपने भाइयों को साथ लेकर यह लंका गया था । वहाँ निर्वात को युद्ध में मारकर इसने लंका पर विजय प्राप्त की थी । इसके माता-पिता और भाई भी लंका पहुँच गये थे । इसके पश्चात् इसने हेमपुर के राजा हेम विद्याधर तथा रानी भोगवती की पुत्री चंद्रवती को विवाहा था । यह लंका का राजा होकर भी सभी विद्याधरों पर शासन करता था । इसने मेरु पर्वत तथा नंदन वन में जिनमंदिर बनवाये थे और किमिच्छक दान दिया था । अंत में यह सहस्रार के पुत्र लोकरक्षक इंद्र विद्याधर द्वारा युद्ध में चक्र से मारा गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#530|पद्मपुराण - 6.530-565]], 7.33-34, 53-54, 87-88 </span></p> | ||
<p id="2">(2) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.35 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_52#35|हरिवंशपुराण - 52.35]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 9: | Line 9: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] |
Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
(1) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह अलंकारपुर के राजा सुकेश और रानी इंद्राणी का ज्येष्ठ पुत्र तथा सुमाली और माल्यवान् का बड़ा भाई था । इसके पूर्वज लंका के राजा थे किंतु वे क्रूर और बलवान् निर्वात विद्याधर के भय से अलंकारपुर में रहने लगे थे । इसने पिता के समक्ष चोटी खोलकर पूर्वजों का राज्य वापिस लेने की प्रतिज्ञा की दी । इस कार्य के लिए अपने भाइयों को साथ लेकर यह लंका गया था । वहाँ निर्वात को युद्ध में मारकर इसने लंका पर विजय प्राप्त की थी । इसके माता-पिता और भाई भी लंका पहुँच गये थे । इसके पश्चात् इसने हेमपुर के राजा हेम विद्याधर तथा रानी भोगवती की पुत्री चंद्रवती को विवाहा था । यह लंका का राजा होकर भी सभी विद्याधरों पर शासन करता था । इसने मेरु पर्वत तथा नंदन वन में जिनमंदिर बनवाये थे और किमिच्छक दान दिया था । अंत में यह सहस्रार के पुत्र लोकरक्षक इंद्र विद्याधर द्वारा युद्ध में चक्र से मारा गया । पद्मपुराण - 6.530-565, 7.33-34, 53-54, 87-88
(2) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण - 52.35