विजयपुर: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) अंतिम सोलह द्वीपों ने दूसरे जंबूद्वीप की पूर्वदिशा में विद्यमान नगर । विजयदेव यहीं रहता है । यह नगर बारह योजन | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) अंतिम सोलह द्वीपों ने दूसरे जंबूद्वीप की पूर्वदिशा में विद्यमान नगर । विजयदेव यहीं रहता है । यह नगर बारह योजन चौड़ा और चारों दिशाओं में चार तोरणों से विभूषित है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#397|हरिवंशपुराण - 5.397-318]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र महापुराण के अनुसार विदेहक्षेत्र का एक नगर । कृष्ण की पटरानी जांबवती पूर्वभव में इस नगर के राजा बंधुषेण अपर नाम मधुषेण और रानी बंधुमती की वरुणा नाम की कन्या थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.363-364</span>, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#48|हरिवंशपुराण - 60.48]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का छप्पनवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण | <p id="3" class="HindiText">(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का छप्पनवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19. 86-87</span></p> | ||
<p id="4">(4) मगध देश का एक नगर । धर से निकलकर सर्वप्रथम वसुदेव ने यही आकर विश्राम किया था । यहाँ के राजा ने अपनी कन्या श्यामला वसुदेव को दी थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>70.249-252, <span class="GRef"> पांडवपुराण 11.17 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) मगध देश का एक नगर । धर से निकलकर सर्वप्रथम वसुदेव ने यही आकर विश्राम किया था । यहाँ के राजा ने अपनी कन्या श्यामला वसुदेव को दी थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>70.249-252, <span class="GRef"> पांडवपुराण 11.17 </span></p> | ||
<p id="5">(5) एक नगर । यहाँ के राजा विजयनंदन ने वीतशीकपुर नगर के राजा मेरुचंद्र की पुत्री गौरी कृष्ण को दी थी । <span class="GRef"> महापुराण | <p id="5" class="HindiText">(5) एक नगर । यहाँ के राजा विजयनंदन ने वीतशीकपुर नगर के राजा मेरुचंद्र की पुत्री गौरी कृष्ण को दी थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.439-441</span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
(1) अंतिम सोलह द्वीपों ने दूसरे जंबूद्वीप की पूर्वदिशा में विद्यमान नगर । विजयदेव यहीं रहता है । यह नगर बारह योजन चौड़ा और चारों दिशाओं में चार तोरणों से विभूषित है । हरिवंशपुराण - 5.397-318
(2) जंबूद्वीप के ऐरावतक्षेत्र महापुराण के अनुसार विदेहक्षेत्र का एक नगर । कृष्ण की पटरानी जांबवती पूर्वभव में इस नगर के राजा बंधुषेण अपर नाम मधुषेण और रानी बंधुमती की वरुणा नाम की कन्या थी । महापुराण 71.363-364, हरिवंशपुराण - 60.48
(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का छप्पनवाँ नगर । महापुराण 19. 86-87
(4) मगध देश का एक नगर । धर से निकलकर सर्वप्रथम वसुदेव ने यही आकर विश्राम किया था । यहाँ के राजा ने अपनी कन्या श्यामला वसुदेव को दी थी । महापुराण 70.249-252, पांडवपुराण 11.17
(5) एक नगर । यहाँ के राजा विजयनंदन ने वीतशीकपुर नगर के राजा मेरुचंद्र की पुत्री गौरी कृष्ण को दी थी । महापुराण 71.439-441