विपुलमति: Difference between revisions
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<p id="2">(2) ऋद्धिधारी मुनि विमलमति के सहयात्री मुनि । इन्हीं मुनियों में राजा अमिततेज और राजा श्रीविजय ने अपनी आयु एक मास की शेष रह जाना ज्ञात कर मुनि नंदन से प्रायोपगमन संन्यास धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.407-410, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.242-244 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) ऋद्धिधारी मुनि विमलमति के सहयात्री मुनि । इन्हीं मुनियों में राजा अमिततेज और राजा श्रीविजय ने अपनी आयु एक मास की शेष रह जाना ज्ञात कर मुनि नंदन से प्रायोपगमन संन्यास धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.407-410, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.242-244 </span></p> | ||
<p id="3">(3) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । प्रियदत्ता ने इन्हें आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 46.76 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । प्रियदत्ता ने इन्हें आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 46.76 </span></p> | ||
<p id="4">(4) चारणऋद्धिधारी मुनि ऋजुमति के सहयात्री मुनि । राजा प्रीतिकर ने इन्हीं से धर्म का स्वरूप और अपना पूर्वभव जाना था । <span class="GRef"> महापुराण 76. 351 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) चारणऋद्धिधारी मुनि ऋजुमति के सहयात्री मुनि । राजा प्रीतिकर ने इन्हीं से धर्म का स्वरूप और अपना पूर्वभव जाना था । <span class="GRef"> महापुराण 76. 351 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
ज्ञान के पाँच भेदों में चौथा ज्ञान मन:पर्ययज्ञान है । यह देश (विकल) प्रत्यक्ष होता है । इसके दो भेदों में दूसरा भेद विपुलमति । हरिवंशपुराण - 2.56,हरिवंशपुराण - 2.10 देखें मनःपर्यय ।
पुराणकोष से
(1) मन:पर्ययज्ञान के दो भेदों में दूसरा भेद । महापुराण 2.68, हरिवंशपुराण - 10.153
(2) ऋद्धिधारी मुनि विमलमति के सहयात्री मुनि । इन्हीं मुनियों में राजा अमिततेज और राजा श्रीविजय ने अपनी आयु एक मास की शेष रह जाना ज्ञात कर मुनि नंदन से प्रायोपगमन संन्यास धारण किया था । महापुराण 62.407-410, पांडवपुराण 4.242-244
(3) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । प्रियदत्ता ने इन्हें आहार दिया था । महापुराण 46.76
(4) चारणऋद्धिधारी मुनि ऋजुमति के सहयात्री मुनि । राजा प्रीतिकर ने इन्हीं से धर्म का स्वरूप और अपना पूर्वभव जाना था । महापुराण 76. 351