विविक्त-शय्यासन: Difference between revisions
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<p> छ: बाह्य तपों में पाँचवाँ तप । व्रत की शुद्धि के लिए पशु तथा स्त्री आदि से रहित एकांत प्रासुक स्थान में ध्यान तथा स्वाध्याय आदि करना विविक्तशय्यासन-तप कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 18.68, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.114, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 64-25, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.36 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> छ: बाह्य तपों में पाँचवाँ तप । व्रत की शुद्धि के लिए पशु तथा स्त्री आदि से रहित एकांत प्रासुक स्थान में ध्यान तथा स्वाध्याय आदि करना विविक्तशय्यासन-तप कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 18.68, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#114|पद्मपुराण - 14.114]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 64-25, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.36 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:22, 27 November 2023
छ: बाह्य तपों में पाँचवाँ तप । व्रत की शुद्धि के लिए पशु तथा स्त्री आदि से रहित एकांत प्रासुक स्थान में ध्यान तथा स्वाध्याय आदि करना विविक्तशय्यासन-तप कहलाता है । महापुराण 18.68, पद्मपुराण - 14.114, हरिवंशपुराण 64-25, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.36