विशाखनंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> प्रतिनारायण अश्वग्रीव के तीसरे पूर्वभव का जीव राजगृह नगर के राजा विश्वभूति के अनुज और उसकी पत्नी लक्ष्मणा का पुत्र । इसने नंदनवन की प्राप्ति के लिए अपने ताऊ विश्वभूति के पुत्र विश्वनंदी से युद्ध किया था । युद्ध में इसे युद्धक्षेत्र से भागते हुए देखकर विश्वनंदी को वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह विशाखभूति के साथ संभूत-गुरु के पास दीक्षित हो गया । दैवयोग से विहार करते हुए मुनि विश्वनंदी मथुरा आये । किसी गाय के धक्के से गिर जाने पर इसने क्रोधपूर्वक उनका उपहास किया । इस पर विश्वनंदी ने निदानपूर्वक | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> प्रतिनारायण अश्वग्रीव के तीसरे पूर्वभव का जीव राजगृह नगर के राजा विश्वभूति के अनुज और उसकी पत्नी लक्ष्मणा का पुत्र । इसने नंदनवन की प्राप्ति के लिए अपने ताऊ विश्वभूति के पुत्र विश्वनंदी से युद्ध किया था । युद्ध में इसे युद्धक्षेत्र से भागते हुए देखकर विश्वनंदी को वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह विशाखभूति के साथ संभूत-गुरु के पास दीक्षित हो गया । दैवयोग से विहार करते हुए मुनि विश्वनंदी मथुरा आये । किसी गाय के धक्के से गिर जाने पर इसने क्रोधपूर्वक उनका उपहास किया । इस पर विश्वनंदी ने निदानपूर्वक मरण किया और वे महाशुक्र स्वर्ग में देव हुए । वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुए । यह मुनि के उपहास करने से अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद अलका नगरी के राजा मयूरग्रीव का अश्वग्रीव नामक प्रतिनारायण हुआ । इसका दूसरा नाम विशाखनंद था । <span class="GRef"> महापुराण 57.70-88, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 6-70 </span>देखें [[ अश्वग्रीव ]]</p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
प्रतिनारायण अश्वग्रीव के तीसरे पूर्वभव का जीव राजगृह नगर के राजा विश्वभूति के अनुज और उसकी पत्नी लक्ष्मणा का पुत्र । इसने नंदनवन की प्राप्ति के लिए अपने ताऊ विश्वभूति के पुत्र विश्वनंदी से युद्ध किया था । युद्ध में इसे युद्धक्षेत्र से भागते हुए देखकर विश्वनंदी को वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह विशाखभूति के साथ संभूत-गुरु के पास दीक्षित हो गया । दैवयोग से विहार करते हुए मुनि विश्वनंदी मथुरा आये । किसी गाय के धक्के से गिर जाने पर इसने क्रोधपूर्वक उनका उपहास किया । इस पर विश्वनंदी ने निदानपूर्वक मरण किया और वे महाशुक्र स्वर्ग में देव हुए । वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुए । यह मुनि के उपहास करने से अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद अलका नगरी के राजा मयूरग्रीव का अश्वग्रीव नामक प्रतिनारायण हुआ । इसका दूसरा नाम विशाखनंद था । महापुराण 57.70-88, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 6-70 देखें अश्वग्रीव