बोधपाहुड़ गाथा 6: Difference between revisions
From जैनकोष
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<div class="HindiBhavarth"><div>पहिली गाथा में तो बाह्य का स्वरूप कहा था । यहाँ बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार से संयमी हो वह ‘आयतन’ है, इसप्रकार जानना चाहिए ॥६॥</div> | <div class="HindiBhavarth"><div>भावार्थ - पहिली गाथा में तो बाह्य का स्वरूप कहा था । यहाँ बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार से संयमी हो वह ‘आयतन’ है, इसप्रकार जानना चाहिए ॥६॥</div> | ||
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Latest revision as of 17:21, 2 November 2013
मयरायदोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्त ।
पंचमहव्वयधारी आयदणं महरिसी भणियं ॥६॥
मद: राग: द्वेष: मोह: क्रोध: लोभ: च यस्य आयत्त: ।
पञ्चमहाव्रतधारी आयतनं महर्षयो भणिता: ॥६॥
आगे फिर कहते हैं -
अर्थ - जिस मुनि के मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ और चकार से माया आदि ये सब ‘आयत्त’ अर्थात् निग्रह को प्राप्त हो गये और पाँच महाव्रत जो अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा परिग्रह का त्याग, उनके धारी हो ऐसा महामुनि ऋषीश्वर ‘आयतन’ कहा है ।
भावार्थ - पहिली गाथा में तो बाह्य का स्वरूप कहा था । यहाँ बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार से संयमी हो वह ‘आयतन’ है, इसप्रकार जानना चाहिए ॥६॥