बोधपाहुड़ गाथा 21: Difference between revisions
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<div class=" | <div class="HindiBhavarth"><div>अर्थ - जैसे बेधनेवाला (वेधक) जो बाण उससे रहित ऐसा जो पुरुष है वह कांड अर्थात् धनुष के अभ्यास से रहित हो तो लक्ष्य अर्थात् निशाने को नहीं पाता है, वैसे ही ज्ञान से रहित अज्ञानी है, वह दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप जो मोक्षमार्ग उसका लक्ष्य अर्थात् स्वलक्षण से जानने योग्य परमात्मा के स्वरूप, उसको नहीं प्राप्त कर सकते ।</div> | ||
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<div class="HindiBhavarth"><div>धनुषधारी धनुष के अभ्यास से रहित और ‘वेधक’ बाण से रहित हो तो निशाने को नहीं प्राप्त कर सकते, वैसे ही ज्ञानरहित अज्ञानी मोक्षमार्ग का निशाना जो परमात्मा का स्वरूप है, उसको न पहिचाने तब मोक्षमार्ग की सिद्धि नहीं होती है, इसलिए ज्ञान को जानना चाहिए । परमात्मारूप निशाना ज्ञानरूपबाण द्वारा वेधना योग्य है ॥२१॥</div> | <div class="HindiBhavarth"><div>भावार्थ - धनुषधारी धनुष के अभ्यास से रहित और ‘वेधक’ बाण से रहित हो तो निशाने को नहीं प्राप्त कर सकते, वैसे ही ज्ञानरहित अज्ञानी मोक्षमार्ग का निशाना जो परमात्मा का स्वरूप है, उसको न पहिचाने तब मोक्षमार्ग की सिद्धि नहीं होती है, इसलिए ज्ञान को जानना चाहिए । परमात्मारूप निशाना ज्ञानरूपबाण द्वारा वेधना योग्य है ॥२१॥</div> | ||
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Latest revision as of 17:29, 2 November 2013
जह णवि लहदि हु लक्खं रहिओ कंडस्स वेज्झयविहीणो ।
तह णवि लक्खदि लक्खं अण्णाणी मोक्खमग्गस्स ॥२१॥
तथा नापि लभते स्फुटं लक्षं रहित: काण्डस्य २वेधकविहीन: ।
तथा नापि लक्षयति लक्षं अज्ञानी मोक्षमार्गस्य ॥२१॥
आगे इसी को दृष्टान्त द्वारा दृढ़ करते हैं -
अर्थ - जैसे बेधनेवाला (वेधक) जो बाण उससे रहित ऐसा जो पुरुष है वह कांड अर्थात् धनुष के अभ्यास से रहित हो तो लक्ष्य अर्थात् निशाने को नहीं पाता है, वैसे ही ज्ञान से रहित अज्ञानी है, वह दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप जो मोक्षमार्ग उसका लक्ष्य अर्थात् स्वलक्षण से जानने योग्य परमात्मा के स्वरूप, उसको नहीं प्राप्त कर सकते ।
भावार्थ - धनुषधारी धनुष के अभ्यास से रहित और ‘वेधक’ बाण से रहित हो तो निशाने को नहीं प्राप्त कर सकते, वैसे ही ज्ञानरहित अज्ञानी मोक्षमार्ग का निशाना जो परमात्मा का स्वरूप है, उसको न पहिचाने तब मोक्षमार्ग की सिद्धि नहीं होती है, इसलिए ज्ञान को जानना चाहिए । परमात्मारूप निशाना ज्ञानरूपबाण द्वारा वेधना योग्य है ॥२१॥