बोधपाहुड़ गाथा 22: Difference between revisions
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<div class="HindiUtthanika">आगे कहते हैं कि इसप्रकार ज्ञान-विनय-संयुक्त पुरुष होवे वही मोक्ष को प्राप्त करता है -</div> | <div class="HindiUtthanika">आगे कहते हैं कि इसप्रकार ज्ञान-विनय-संयुक्त पुरुष होवे वही मोक्ष को प्राप्त करता है -</div> | ||
<div class=" | <div class="HindiBhavarth"><div>अर्थ - ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष विनयसंयुक्त हो तो ज्ञान को प्राप्त करता है, जब ज्ञान को प्राप्त करता है तब उस ज्ञान द्वारा ही मोक्षमार्ग का लक्ष्य जो ‘परमात्मा का स्वरूप’ उसको लक्षता-देखता-ध्यान करता हुआ उस लक्ष्य को प्राप्त करता है ।</div> | ||
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<div class="HindiBhavarth"><div>ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष ही विनयवान होवे सो ज्ञान को प्राप्त करता है, उस ज्ञान द्वारा ही शुद्ध आत्मा का स्वरूप जाना जाता है, इसलिए विशेष ज्ञानियों के विनय द्वारा ज्ञान की प्राप्ति करनी, क्योंकि निज शुद्ध स्वरूप को जानकर मोक्ष प्राप्त किया जाता है । यहाँ जो विनयरहित हो, यथार्थ सूत्र पद से चिगा हो, भ्रष्ट हो गया हो उसका निषेध जानना ॥२२॥</div> | <div class="HindiBhavarth"><div>भावार्थ - ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष ही विनयवान होवे सो ज्ञान को प्राप्त करता है, उस ज्ञान द्वारा ही शुद्ध आत्मा का स्वरूप जाना जाता है, इसलिए विशेष ज्ञानियों के विनय द्वारा ज्ञान की प्राप्ति करनी, क्योंकि निज शुद्ध स्वरूप को जानकर मोक्ष प्राप्त किया जाता है । यहाँ जो विनयरहित हो, यथार्थ सूत्र पद से चिगा हो, भ्रष्ट हो गया हो उसका निषेध जानना ॥२२॥</div> | ||
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Latest revision as of 17:30, 2 November 2013
णाणं पुरिस्स हवदि लहदि सुपुरिसो वि विणयसंजुत्ते ।
णाणेण लहदि लक्खं लक्खंतो मोक्खमग्गस्स ॥२२॥
ज्ञानं पुरुषस्य भवति लभते सुपुरुषोऽपि विनयसंयुक्त: ।
ज्ञानेन लभते लक्ष्यं लक्षयन् मोक्षमार्गस्य ॥२२॥
आगे कहते हैं कि इसप्रकार ज्ञान-विनय-संयुक्त पुरुष होवे वही मोक्ष को प्राप्त करता है -
अर्थ - ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष विनयसंयुक्त हो तो ज्ञान को प्राप्त करता है, जब ज्ञान को प्राप्त करता है तब उस ज्ञान द्वारा ही मोक्षमार्ग का लक्ष्य जो ‘परमात्मा का स्वरूप’ उसको लक्षता-देखता-ध्यान करता हुआ उस लक्ष्य को प्राप्त करता है ।
भावार्थ - ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष ही विनयवान होवे सो ज्ञान को प्राप्त करता है, उस ज्ञान द्वारा ही शुद्ध आत्मा का स्वरूप जाना जाता है, इसलिए विशेष ज्ञानियों के विनय द्वारा ज्ञान की प्राप्ति करनी, क्योंकि निज शुद्ध स्वरूप को जानकर मोक्ष प्राप्त किया जाता है । यहाँ जो विनयरहित हो, यथार्थ सूत्र पद से चिगा हो, भ्रष्ट हो गया हो उसका निषेध जानना ॥२२॥