बोधपाहुड़ गाथा 36: Difference between revisions
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<div class="HindiGatha"><div>सैनी पंचेन्द्रियों नाम के इस चतुर्दश जीवस्थान में ।</div> | <div class="HindiGatha"><div>सैनी पंचेन्द्रियों नाम के इस चतुर्दश जीवस्थान में ।</div> | ||
<div>अरहंत होते हैं सदा गुणसहित मानवलोक में ॥३६॥</div> | <div>अरहंत होते हैं सदा गुणसहित मानवलोक में ॥३६॥</div> | ||
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<div class="HindiBhavarth"><div>मनुष्यभव में पंचेन्द्रिय नाम के चौदहवें जीवस्थान अर्थात् जीवसमास उसमें इतने गुणों के समूह से युक्त तेरहवें गुणस्थान को प्राप्त अरहंत होते हैं ।</div> | |||
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<div class="HindiBhavarth"><div>जीवसमास चौदह कहे हैं - एकेन्द्रिय सूक्ष्म और बादर २. दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चोइन्द्रिय ऐसे विकलत्रय-३, पंचेन्द्रिय असैनी सैनी २, ऐसे सात हुए, ये पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चौदह हुए । इनमें चौदहवाँ ‘सैनी पंचेन्द्रिय जीवस्थान’ अरहंत के हैं । गाथा में सैनी का नाम न लिया और मनुष्यभव का नाम लिया सो मनुष्य सैनी ही होते हैं, असैनी नहीं होते हैं, इसलिए मनुष्य कहने से ‘सैनी’ ही जानना चाहिए ॥३६॥इसप्रकार जीवस्थानद्वारा ‘स्थापना अरहंत’ का वर्णन किया -</div> | <div class="HindiBhavarth"><div>जीवसमास चौदह कहे हैं - एकेन्द्रिय सूक्ष्म और बादर २. दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चोइन्द्रिय ऐसे विकलत्रय-३, पंचेन्द्रिय असैनी सैनी २, ऐसे सात हुए, ये पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चौदह हुए । इनमें चौदहवाँ ‘सैनी पंचेन्द्रिय जीवस्थान’ अरहंत के हैं । गाथा में सैनी का नाम न लिया और मनुष्यभव का नाम लिया सो मनुष्य सैनी ही होते हैं, असैनी नहीं होते हैं, इसलिए मनुष्य कहने से ‘सैनी’ ही जानना चाहिए ॥३६॥इसप्रकार जीवस्थानद्वारा ‘स्थापना अरहंत’ का वर्णन किया -</div> |
Latest revision as of 16:14, 2 November 2013
मणुयभवे पंचिंदिय जीवट्ठाणेसु होइ चउदसमे ।
एदे गुणगणजुत्ते गुणमारूढो हवइ अरहो ॥३६॥
मनजुभवे पञ्चेन्द्रिय: जीवस्थानेषु भवति चतुर्दशे ।
एतद्गुणगणयुक्त: गुणमारूढो भवति अर्हन् ॥३६॥
आगे जीवस्थानद्वारा कहते हैं -
हरिगीत
सैनी पंचेन्द्रियों नाम के इस चतुर्दश जीवस्थान में ।
अरहंत होते हैं सदा गुणसहित मानवलोक में ॥३६॥
मनुष्यभव में पंचेन्द्रिय नाम के चौदहवें जीवस्थान अर्थात् जीवसमास उसमें इतने गुणों के समूह से युक्त तेरहवें गुणस्थान को प्राप्त अरहंत होते हैं ।
जीवसमास चौदह कहे हैं - एकेन्द्रिय सूक्ष्म और बादर २. दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चोइन्द्रिय ऐसे विकलत्रय-३, पंचेन्द्रिय असैनी सैनी २, ऐसे सात हुए, ये पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चौदह हुए । इनमें चौदहवाँ ‘सैनी पंचेन्द्रिय जीवस्थान’ अरहंत के हैं । गाथा में सैनी का नाम न लिया और मनुष्यभव का नाम लिया सो मनुष्य सैनी ही होते हैं, असैनी नहीं होते हैं, इसलिए मनुष्य कहने से ‘सैनी’ ही जानना चाहिए ॥३६॥इसप्रकार जीवस्थानद्वारा ‘स्थापना अरहंत’ का वर्णन किया -