सहस्रायुध: Difference between revisions
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<span class="GRef"> महापुराण/63/ श्लोक</span><br><span class="HindiText">-वज्रायुध का पुत्र था।45। मुनि पिहितास्रव से दीक्षा लेकर, पिता का भोग समाप्त होने पर उसके पास जाकर घोर तप किया। संन्यासमरण कर अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र हुआ।138-141।</span> | |||
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<p> जंबूद्वीप में पूर्वविदेहक्षेत्र के रत्नसंचय नगर के राजा क्षेमंकर का पौत्र तथा चक्रवर्ती वज्रायुध का पुत्र । लक्ष्मीमती इसकी माता, श्रीषेणा रानी और कनकशांत पुत्र तथा कनकमाला पुत्रवधू थी । इसका यह पुत्र दीक्षित हो गया था । पिता के दीक्षित होने के पश्चात् यह भी शतबली को राज्य सौंपकर पिहितास्रव मुनि के पास दीक्षित हुआ और वैभार पर्वत पर सन्यासमरण कर ऊर्ध्वग्रैवेयक के सौमनस विमान में ऋद्धिधारी देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 63. 37-39, 45-46, 116-117, 123, 138-141, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.50-52 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जंबूद्वीप में पूर्वविदेहक्षेत्र के रत्नसंचय नगर के राजा क्षेमंकर का पौत्र तथा चक्रवर्ती वज्रायुध का पुत्र । लक्ष्मीमती इसकी माता, श्रीषेणा रानी और कनकशांत पुत्र तथा कनकमाला पुत्रवधू थी । इसका यह पुत्र दीक्षित हो गया था । पिता के दीक्षित होने के पश्चात् यह भी शतबली को राज्य सौंपकर पिहितास्रव मुनि के पास दीक्षित हुआ और वैभार पर्वत पर सन्यासमरण कर ऊर्ध्वग्रैवेयक के सौमनस विमान में ऋद्धिधारी देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 63. 37-39, 45-46, 116-117, 123, 138-141, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.50-52 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
महापुराण/63/ श्लोक
-वज्रायुध का पुत्र था।45। मुनि पिहितास्रव से दीक्षा लेकर, पिता का भोग समाप्त होने पर उसके पास जाकर घोर तप किया। संन्यासमरण कर अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र हुआ।138-141।
पुराणकोष से
जंबूद्वीप में पूर्वविदेहक्षेत्र के रत्नसंचय नगर के राजा क्षेमंकर का पौत्र तथा चक्रवर्ती वज्रायुध का पुत्र । लक्ष्मीमती इसकी माता, श्रीषेणा रानी और कनकशांत पुत्र तथा कनकमाला पुत्रवधू थी । इसका यह पुत्र दीक्षित हो गया था । पिता के दीक्षित होने के पश्चात् यह भी शतबली को राज्य सौंपकर पिहितास्रव मुनि के पास दीक्षित हुआ और वैभार पर्वत पर सन्यासमरण कर ऊर्ध्वग्रैवेयक के सौमनस विमान में ऋद्धिधारी देव हुआ । महापुराण 63. 37-39, 45-46, 116-117, 123, 138-141, पांडवपुराण 5.50-52