काल परिवर्तन: Difference between revisions
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<p class=" | <p> <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि/2/10/166/6</span> <span class="SanskritText"> कालपरिवर्तनमुच्यते-उत्सर्पिण्या: प्रथमसमये जात: कश्चिज्जीव: स्वायुष: परिसमाप्तौ मृत:। स एव पुनर्द्वितीयाया उत्सर्पिण्या द्वितीयसमये जात: स्वायुषक्षयान्मृत:। स एव पुनस्तृतीयाया उत्सर्पिण्यास्तृतीयसमये जात:। एवमनेन क्रमेणोत्सर्पिणी परिसमाप्ता। तथावसर्पिणी च। एवं जंमनैरंतर्यमुक्तम् । मरणस्यापि नैरंतर्यं तथैव ग्राह्यम् । एतावत्कालपरिवर्तनम् । | ||
</span>=<span class="HindiText">कोई जीव उत्सर्पिणी के प्रथम समय में उत्पन्न हुआ और आयु के समाप्त हो जाने पर मर गया। पुन: वही जीव दूसरी उत्सर्पिणी के दूसरे समय में उत्पन्न हुआ और अपनी आयु के समाप्त होने पर मर गया। पुन: वही जीव तीसरी उत्सर्पिणी के तीसरे समय में उत्पन्न हुआ इस प्रकार इसने क्रम से उत्सर्पिणी समाप्त की और इसी प्रकार अवसिर्पणी भी। यह जन्म नैरंतर्य कहा। तथा इसी प्रकार मरण का भी नैरंतर्य लेना चाहिए। यह सब मिलकर एक '''कालपरिवर्तन''' है। </span></p> | |||
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सर्वार्थसिद्धि/2/10/166/6 कालपरिवर्तनमुच्यते-उत्सर्पिण्या: प्रथमसमये जात: कश्चिज्जीव: स्वायुष: परिसमाप्तौ मृत:। स एव पुनर्द्वितीयाया उत्सर्पिण्या द्वितीयसमये जात: स्वायुषक्षयान्मृत:। स एव पुनस्तृतीयाया उत्सर्पिण्यास्तृतीयसमये जात:। एवमनेन क्रमेणोत्सर्पिणी परिसमाप्ता। तथावसर्पिणी च। एवं जंमनैरंतर्यमुक्तम् । मरणस्यापि नैरंतर्यं तथैव ग्राह्यम् । एतावत्कालपरिवर्तनम् । =कोई जीव उत्सर्पिणी के प्रथम समय में उत्पन्न हुआ और आयु के समाप्त हो जाने पर मर गया। पुन: वही जीव दूसरी उत्सर्पिणी के दूसरे समय में उत्पन्न हुआ और अपनी आयु के समाप्त होने पर मर गया। पुन: वही जीव तीसरी उत्सर्पिणी के तीसरे समय में उत्पन्न हुआ इस प्रकार इसने क्रम से उत्सर्पिणी समाप्त की और इसी प्रकार अवसिर्पणी भी। यह जन्म नैरंतर्य कहा। तथा इसी प्रकार मरण का भी नैरंतर्य लेना चाहिए। यह सब मिलकर एक कालपरिवर्तन है।
देखें संसार - 2।