हरिवर्मा: Difference between revisions
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अंगदेश के चंपापुर नगर का राजा था। दीक्षा धारणकर 11 अंगों का अध्ययन किया। दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। अंत में समाधि मरणकर प्राणत स्वर्ग में इंद्र हुआ। ( महापुराण/67/2-15 ) यह मुनिसुव्रत नाथ भगवान का पूर्व का दूसरा भव है।-देखें [[ मुनिसुव्रत ]]। | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="HindiText"> अंगदेश के चंपापुर नगर का राजा था। दीक्षा धारणकर 11 अंगों का अध्ययन किया। दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। अंत में समाधि मरणकर प्राणत स्वर्ग में इंद्र हुआ। <span class="GRef">( महापुराण/67/2-15 )</span> यह मुनिसुव्रत नाथ भगवान का पूर्व का दूसरा भव है।-देखें [[ मुनिसुव्रत ]]। </span> | |||
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<span class="HindiText"> तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीसरे पूर्वभव का जीव-भरतक्षेत्र के अंग देशस्थ चंपापुर नगर का राजा । यह अनंतवीर्य नामक मुनि से धर्म का स्वरूप समझकर संसार से विरक्त हो गया था । इसने अपने बड़े पुत्र को राज्य देकर संयम ले लिया तथा सोलहकारण भावनाओं को भाते हुए तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । बहुत समय तक तप करने के पश्चात् यह आयु के अंत में समाधिमरणपूर्वक देह त्याग करके प्राणत स्वर्ग का इंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 67.1-15 </span></span> | |||
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Latest revision as of 22:36, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
अंगदेश के चंपापुर नगर का राजा था। दीक्षा धारणकर 11 अंगों का अध्ययन किया। दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं का चिंतवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। अंत में समाधि मरणकर प्राणत स्वर्ग में इंद्र हुआ। ( महापुराण/67/2-15 ) यह मुनिसुव्रत नाथ भगवान का पूर्व का दूसरा भव है।-देखें मुनिसुव्रत ।
पुराणकोष से
तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीसरे पूर्वभव का जीव-भरतक्षेत्र के अंग देशस्थ चंपापुर नगर का राजा । यह अनंतवीर्य नामक मुनि से धर्म का स्वरूप समझकर संसार से विरक्त हो गया था । इसने अपने बड़े पुत्र को राज्य देकर संयम ले लिया तथा सोलहकारण भावनाओं को भाते हुए तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । बहुत समय तक तप करने के पश्चात् यह आयु के अंत में समाधिमरणपूर्वक देह त्याग करके प्राणत स्वर्ग का इंद्र हुआ । महापुराण 67.1-15