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<span class="GRef"> राजवार्तिक/1/7/ </span>.../38/2 <span class="SanskritText">निर्देशोऽर्थावधारणम् ।</span> =<span class="HindiText">पदार्थ के स्वरूप का निश्चय करना निर्देश है।</span> <span class="GRef"> धवला 1/1,1,8/160/1 | <span class="GRef"> राजवार्तिक/1/7/ </span>.../38/2 <span class="SanskritText">निर्देशोऽर्थावधारणम् ।</span> =<span class="HindiText">पदार्थ के स्वरूप का निश्चय करना निर्देश है।</span> <span class="GRef"> <br>धवला 1/1,1,8/160/1 </span><span class="PrakritText">निर्देश: प्ररूपणं विवरणं व्याख्यानमिति यावत् ।</span><br><span class="GRef"> धवला 3/1,2,1/8/9</span><br><span class="PrakritText">सोदाराणं जहा णिच्छयो होदि तहा देसो णिद्देसो। कुतीर्थपाखंडिन: अतिशय्य कथनं वा निर्देश:।</span>= | ||
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<li class="HindiText"> निर्देश, प्ररूपण, विवरण और व्याख्यान ये सब पर्यायवाची शब्द हैं। </li> | <li class="HindiText"> निर्देश, प्ररूपण, विवरण और व्याख्यान ये सब पर्यायवाची शब्द हैं। </li> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
- निर्देश का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/1/7/22/3 निर्देश: स्वरूपाभिधानम् । =किसी वस्तु के स्वरूप का कथन करना निर्देश है।
राजवार्तिक/1/7/ .../38/2 निर्देशोऽर्थावधारणम् । =पदार्थ के स्वरूप का निश्चय करना निर्देश है।
धवला 1/1,1,8/160/1 निर्देश: प्ररूपणं विवरणं व्याख्यानमिति यावत् ।
धवला 3/1,2,1/8/9
सोदाराणं जहा णिच्छयो होदि तहा देसो णिद्देसो। कुतीर्थपाखंडिन: अतिशय्य कथनं वा निर्देश:।=- निर्देश, प्ररूपण, विवरण और व्याख्यान ये सब पर्यायवाची शब्द हैं।
- जिस प्रकार के कथन करने से श्रोताओं को पदार्थ के विषय में निश्चय होता है, उस प्रकार के कथन करने को निर्देश कहते हैं। अथवा कुतीर्थ अर्थात् सर्वथा एकांतवाद के प्रस्थापक पाखंडियों को उल्लंघन करके अतिशय रूप कथन करने को निर्देश कहते हैं।
- निर्देश के भेद
धवला 1/1,1,8/160/2 स द्विविधो द्विप्रकार: ओघेन आदेशेन च। =वह निर्देश ओघ व आदेश की अपेक्षा दो प्रकार का है। [ओघ व आदेश के लक्षण (देखें वह वह नाम )]।