व्यंजन: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> अव्यक्त शब्दादि के समूह को व्यंजन कहते हैं । | <li class="HindiText"> अव्यक्त शब्दादि के समूह को व्यंजन कहते हैं । <span class="GRef">( राजवार्तिक/1/18/-/66/27 )</span> । </li> | ||
<li | <li class="HindiText"> व्यंजन का अर्थ वचन है । <span class="GRef">( राजवार्तिक/9/44/-/634/10 )</span> । </span><br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"> व्यंजन की अपेक्षा अक्षरों के भेद–प्रभेद–देखें [[ अक्षर ]]। <br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"> निमित्तज्ञान विशेष–देखें [[ निमित्त | निमित्त ]]। </span></li> | ||
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<p id="1">(1) स्वप्न, अंतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण और छिन्न इन अष्टांग निमित्तों में छठा निमित्त । शिर, मुख आदि में रहने वाले तिल आदि व्यंजन कहलाते हैं । इनसे स्थान, मान, ऐश्वर्य, लाभ-अलाभ आदि के संकेत मिलते है । <span class="GRef"> महापुराण 62.181, 187, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.117 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) स्वप्न, अंतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण और छिन्न इन अष्टांग निमित्तों में छठा निमित्त । शिर, मुख आदि में रहने वाले तिल आदि व्यंजन कहलाते हैं । इनसे स्थान, मान, ऐश्वर्य, लाभ-अलाभ आदि के संकेत मिलते है । <span class="GRef"> महापुराण 62.181, 187, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#117|हरिवंशपुराण - 10.117]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) मसालों के साथ पकाये गये स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ । <span class="GRef"> महापुराण 3.202 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) मसालों के साथ पकाये गये स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ । <span class="GRef"> महापुराण 3.202 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/1/18/116/7 व्यंजनमव्यक्तं शब्दादिजातं ।
सर्वार्थसिद्धि/9/44/455/9 व्यंजनं वचनम् । =
- अव्यक्त शब्दादि के समूह को व्यंजन कहते हैं । ( राजवार्तिक/1/18/-/66/27 ) ।
- व्यंजन का अर्थ वचन है । ( राजवार्तिक/9/44/-/634/10 ) ।
धवला 13/5, 5, 45/ आ./1/2/248 व्यंजनं त्वर्द्धमात्रकम् । = व्यंजन अर्ध मात्रा वाला होता है ।
पुराणकोष से
(1) स्वप्न, अंतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण और छिन्न इन अष्टांग निमित्तों में छठा निमित्त । शिर, मुख आदि में रहने वाले तिल आदि व्यंजन कहलाते हैं । इनसे स्थान, मान, ऐश्वर्य, लाभ-अलाभ आदि के संकेत मिलते है । महापुराण 62.181, 187, हरिवंशपुराण - 10.117
(2) मसालों के साथ पकाये गये स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ । महापुराण 3.202