सिंधु: Difference between revisions
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<li>भरतक्षेत्रस्थ एक कुंड जिसमें से सिंधु नदी निकलती है-देखें [[ लोक#3.10 | लोक - 3.10]]</li> | <li>भरतक्षेत्रस्थ एक कुंड जिसमें से सिंधु नदी निकलती है-देखें [[ लोक#3.10 | लोक - 3.10]]</li> | ||
<li>हिमवान् पर्वतस्थ एक कूट-देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]];</li> | <li>हिमवान् पर्वतस्थ एक कूट-देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]];</li> | ||
<li>सिंधु कूट व सिंधु कुंड की स्वामिनी देवी-देखें [[ लोक#3.10 | लोक - 3.10]]</li> | <li>सिंधु कूट व सिंधु कुंड की स्वामिनी देवी-देखें [[ लोक#3.10 | लोक - 3.10]]</li> | ||
<li>भरतक्षेत्र उत्तर आर्य खंड का एक देश-देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]];</li> | <li>भरतक्षेत्र उत्तर आर्य खंड का एक देश-देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]];</li> | ||
<li>वर्तमान सिंध देश। कराची राजधानी है। | <li>वर्तमान सिंध देश। कराची राजधानी है। <span class="GRef">( महापुराण/ प्रस्तावना 50 पन्नालाल)</span>।</li> | ||
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<p id="1"> (1) भरतक्षेत्र में उत्तरदिशा की ओर स्थित एक देश । भरतेश | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरतक्षेत्र में उत्तरदिशा की ओर स्थित एक देश । भरतेश के भाई ने इस देश का राज्य त्याग कर वृषभदेव के समीप दीक्षा धारण कर ली थी । भरतेश को यहाँ के घोड़े भेंट में प्राप्त हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 16.155, 30.107, 75.3, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#5|हरिवंशपुराण - 3.5]], 11.62, 67, 44.33 </span></p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप की प्रसिद्ध चौदह महानदियों में दूसरी नदी । यह पद्म सरोवर के पश्चिम द्वार से निकली है तथा पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती हे । दिग्विजय के समय भरतेश का सेनापति यहाँ ससैन्य आया था । वृषभदेव के राज्याभिषेक के लिए यहाँ का जल लाया गया था । <span class="GRef"> महापुराण 16.209, 19.105, 28.61, 29.61, 32.122, 63.195, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.122-123, 132, 11.39 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप की प्रसिद्ध चौदह महानदियों में दूसरी नदी । यह पद्म सरोवर के पश्चिम द्वार से निकली है तथा पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती हे । दिग्विजय के समय भरतेश का सेनापति यहाँ ससैन्य आया था । वृषभदेव के राज्याभिषेक के लिए यहाँ का जल लाया गया था । <span class="GRef"> महापुराण 16.209, 19.105, 28.61, 29.61, 32.122, 63.195, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#122|हरिवंशपुराण - 5.122-123]], 132, 11.39 </span></p> | ||
<p id="3">(3) सिंधुकूट की एक देवी । इसने चकवर्ती भरतेश को वस्त्र, आभूषण तथा दिव्य आसन भेंट में दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 32.79-83, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11. 40 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) सिंधुकूट की एक देवी । इसने चकवर्ती भरतेश को वस्त्र, आभूषण तथा दिव्य आसन भेंट में दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 32.79-83, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#40|हरिवंशपुराण - 11.40]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भरत क्षेत्र की प्रसिद्ध नदी-देखें मनुष्य - 4; लोक - 3.11
- भरतक्षेत्रस्थ एक कुंड जिसमें से सिंधु नदी निकलती है-देखें लोक - 3.10
- हिमवान् पर्वतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.4;
- सिंधु कूट व सिंधु कुंड की स्वामिनी देवी-देखें लोक - 3.10
- भरतक्षेत्र उत्तर आर्य खंड का एक देश-देखें मनुष्य - 4;
- वर्तमान सिंध देश। कराची राजधानी है। ( महापुराण/ प्रस्तावना 50 पन्नालाल)।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र में उत्तरदिशा की ओर स्थित एक देश । भरतेश के भाई ने इस देश का राज्य त्याग कर वृषभदेव के समीप दीक्षा धारण कर ली थी । भरतेश को यहाँ के घोड़े भेंट में प्राप्त हुए थे । महापुराण 16.155, 30.107, 75.3, हरिवंशपुराण - 3.5, 11.62, 67, 44.33
(2) जंबूद्वीप की प्रसिद्ध चौदह महानदियों में दूसरी नदी । यह पद्म सरोवर के पश्चिम द्वार से निकली है तथा पश्चिम समुद्र में प्रवेश करती हे । दिग्विजय के समय भरतेश का सेनापति यहाँ ससैन्य आया था । वृषभदेव के राज्याभिषेक के लिए यहाँ का जल लाया गया था । महापुराण 16.209, 19.105, 28.61, 29.61, 32.122, 63.195, हरिवंशपुराण - 5.122-123, 132, 11.39
(3) सिंधुकूट की एक देवी । इसने चकवर्ती भरतेश को वस्त्र, आभूषण तथा दिव्य आसन भेंट में दिये थे । महापुराण 32.79-83, हरिवंशपुराण - 11.40