संकर दोष: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सप्तभंगीतरंगिणी/82/6 </span><span class="SanskritText">सर्वेषां युगपत्प्राप्ति; संकर:।</span> = <span class="HindiText">(उपरोक्तवत्) संपूर्ण स्वभावों की युगपत् प्राप्ति हो जाना संकर है। <span class="GRef">(श्लोकवार्तिक 4/ न्या.459/551/18 पर भाषा में उद्धृत) </span>।</span></p> | |||
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स्याद्वादमंजरी/24/292/10 येनात्मना सामान्यस्याधिकरणं तेन सामान्यस्य विशेषस्य च, येन च विशेषस्याधिकरणं तेन विशेषस्य सामान्यस्य चेति संकरदोष:। = स्याद्वादियों के मत में अस्तित्व और नास्तित्व एक जगह रहते हैं। इसलिए अस्तित्व के अधिकरण में अस्तित्व और नास्तित्व के रहने से, और नास्तित्व के अधिकरण में नास्तित्व और अस्तित्व के रहने से स्याद्वाद में संकर दोष आता है। (ऐसी शंका में संकर दोष का स्वरूप प्रकट होता है।)
सप्तभंगीतरंगिणी/82/6 सर्वेषां युगपत्प्राप्ति; संकर:। = (उपरोक्तवत्) संपूर्ण स्वभावों की युगपत् प्राप्ति हो जाना संकर है। (श्लोकवार्तिक 4/ न्या.459/551/18 पर भाषा में उद्धृत) ।