अकंपनाचार्य: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> मुनि-संघ के आचार्य । इनके संघ में सात सौ मुनि थे । एक समय ये संघ सहित उज्जयिनी आये । उस समय उज्जयिनी में श्रीधर्मा नाम का नृप था । इस राजा के बलि, वृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद ये चार मंत्री थे । संघ के दर्शनों की राजा की अभिलाषा जानकर मंत्रियों ने राजा को दर्शन करने से बहुत रोका किंतु वह रुका नहीं । राजा के जाने से मंत्रियों को भी वहाँ जाना | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मुनि-संघ के आचार्य । इनके संघ में सात सौ मुनि थे । एक समय ये संघ सहित उज्जयिनी आये । उस समय उज्जयिनी में श्रीधर्मा नाम का नृप था । इस राजा के बलि, वृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद ये चार मंत्री थे । संघ के दर्शनों की राजा की अभिलाषा जानकर मंत्रियों ने राजा को दर्शन करने से बहुत रोका किंतु वह रुका नहीं । राजा के जाने से मंत्रियों को भी वहाँ जाना पड़ा । संपूर्ण संघ मौन था । मुनियों को मौन देखकर मंत्री अनर्गल बातें करते रहे । उनकी श्रुतसागर मुनि ते भेंट हुई । राजा के समक्ष श्रुतसागर से विवाद हुआ जिसमें मंत्री पराजित हुए । पराभव होने से कुपित होकर मंत्रियों ने श्रुतसागर मुनि को मारना चाहा किंतु संरक्षक देव ने उन्हें स्तंभित कर दिया जिससे वे अपना मनोरथ पूर्ण न कर सके । राजा ने भी उन्हें अपने देश से निकाल दिया । ये मंत्री घूमते हुए हस्तिनापुर आये थे । हस्तिनापुर में राजा पद्म का राज्य था । बलि आदि मंत्री राजा के विरोधी सिंहबल को पकड़कर राजा के पास लाने में सफल हो गये इससे राजा प्रसन्न हुआ और उन्हें अपना मंत्री बना लिया । इस कार्य के लिए उन्हें इच्छित वर मांग लेने के लिए भी कहा जिसे मंत्रियों ने धरोहर के रूप में राजा के पास ही रख छोड़ा । दैवयोग से ये आचार्य ससंघ हस्तिनापुर आवे । इन्हें देखकर बलि आदि ने भयभीत होकर धरोहर के रूप में रखे हुए वर के अंतर्गत राजा से सात दिन का राज्य माँग लिया । राज्य पाकर उन्होंने इन आचार्य और इनके संघ पर अनेक उपसर्ग किये जिनका निवारण विष्णु मुनि ने किया । <span class="GRef"> (महापुराण 70.281-298), </span><span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_20#3|हरिवंशपुराण - 20.3-60]]), </span><span class="GRef"> (पांडवपुराण 7.39-73) </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
हरिवंश पुराण सर्ग 20/श्लोक
मुनिसंघ के नायक थे (5) हस्तिनापुर में ससंघ इन पर बलि आदि चार मंत्रियों ने घोर उपसर्ग किया (33-34) जिसका निवारण विष्णुकुमार मुनि ने किया (62)।
पुराणकोष से
मुनि-संघ के आचार्य । इनके संघ में सात सौ मुनि थे । एक समय ये संघ सहित उज्जयिनी आये । उस समय उज्जयिनी में श्रीधर्मा नाम का नृप था । इस राजा के बलि, वृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद ये चार मंत्री थे । संघ के दर्शनों की राजा की अभिलाषा जानकर मंत्रियों ने राजा को दर्शन करने से बहुत रोका किंतु वह रुका नहीं । राजा के जाने से मंत्रियों को भी वहाँ जाना पड़ा । संपूर्ण संघ मौन था । मुनियों को मौन देखकर मंत्री अनर्गल बातें करते रहे । उनकी श्रुतसागर मुनि ते भेंट हुई । राजा के समक्ष श्रुतसागर से विवाद हुआ जिसमें मंत्री पराजित हुए । पराभव होने से कुपित होकर मंत्रियों ने श्रुतसागर मुनि को मारना चाहा किंतु संरक्षक देव ने उन्हें स्तंभित कर दिया जिससे वे अपना मनोरथ पूर्ण न कर सके । राजा ने भी उन्हें अपने देश से निकाल दिया । ये मंत्री घूमते हुए हस्तिनापुर आये थे । हस्तिनापुर में राजा पद्म का राज्य था । बलि आदि मंत्री राजा के विरोधी सिंहबल को पकड़कर राजा के पास लाने में सफल हो गये इससे राजा प्रसन्न हुआ और उन्हें अपना मंत्री बना लिया । इस कार्य के लिए उन्हें इच्छित वर मांग लेने के लिए भी कहा जिसे मंत्रियों ने धरोहर के रूप में राजा के पास ही रख छोड़ा । दैवयोग से ये आचार्य ससंघ हस्तिनापुर आवे । इन्हें देखकर बलि आदि ने भयभीत होकर धरोहर के रूप में रखे हुए वर के अंतर्गत राजा से सात दिन का राज्य माँग लिया । राज्य पाकर उन्होंने इन आचार्य और इनके संघ पर अनेक उपसर्ग किये जिनका निवारण विष्णु मुनि ने किया । (महापुराण 70.281-298), (हरिवंशपुराण - 20.3-60), (पांडवपुराण 7.39-73)