अंगबाह्य: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> श्रुत का दूसरा भेद - यह गणधरों के शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा रचित श्रुत है । इसके चौदह भेद है― 1. सामायिक 2. जिनस्तव 3. वंदना 4. प्रतिक्रमण 5. वैनयिक 6. कृतिकर्म 7. दशवैकालिक 8. उत्तराध्ययन 9. कल्पव्यवहार 10. कल्पाकल्प 11. महाकल्प 12. पुंडरीक 13. महापुंडरीक और 14. निषद्यका । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 21.101-105 </span>इसका अपरनाम प्रकीर्णक श्रुत है । इसमें आठ करोड एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर अक्षर, एक करोड तेरह हजार पाँच सौ इक्कीस पद तथा पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.125-136 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> श्रुत का दूसरा भेद - यह गणधरों के शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा रचित श्रुत है । इसके चौदह भेद है― 1. सामायिक 2. जिनस्तव 3. वंदना 4. प्रतिक्रमण 5. वैनयिक 6. कृतिकर्म 7. दशवैकालिक 8. उत्तराध्ययन 9. कल्पव्यवहार 10. कल्पाकल्प 11. महाकल्प 12. पुंडरीक 13. महापुंडरीक और 14. निषद्यका । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_21#101|हरिवंशपुराण - 21.101-105]] </span>इसका अपरनाम प्रकीर्णक श्रुत है । इसमें आठ करोड एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर अक्षर, एक करोड तेरह हजार पाँच सौ इक्कीस पद तथा पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#125|हरिवंशपुराण - 10.125-136]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
श्रुत का दूसरा भेद - यह गणधरों के शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा रचित श्रुत है । इसके चौदह भेद है― 1. सामायिक 2. जिनस्तव 3. वंदना 4. प्रतिक्रमण 5. वैनयिक 6. कृतिकर्म 7. दशवैकालिक 8. उत्तराध्ययन 9. कल्पव्यवहार 10. कल्पाकल्प 11. महाकल्प 12. पुंडरीक 13. महापुंडरीक और 14. निषद्यका । हरिवंशपुराण - 21.101-105 इसका अपरनाम प्रकीर्णक श्रुत है । इसमें आठ करोड एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर अक्षर, एक करोड तेरह हजार पाँच सौ इक्कीस पद तथा पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । हरिवंशपुराण - 10.125-136