कार्य समयसार: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> | <p><span class="GRef">नयचक्र बृहद्/368 चूलिका</span><span class="SanskritText"> ‒सकलसमयसारार्थं परिगृह्य पराश्रितोपादेयवाच्यवाचकरूपं पंचपदाश्रितं श्रुतं कारणसमयसार:। भावनमस्काररूपं कार्यसमयसार:। तदाधारेण चतुर्विधधर्मध्यानं कारणसमयसार:। तदनंतरं प्रथमशुक्लध्यानं द्विचत्वारिंशभेदरूपं पराश्रितं कार्यसमयसार:। तदाश्रितभेदज्ञानं कारणसमयसार:। तदाधारीभूतं परान्मुखाकारस्वसंवेदनभेदरूपं कार्यसमयसार:। ...स्वाश्रितस्वरूपनिरूपकं भावनिराकाररूपं सम्यग्द्रव्यश्रुतं कारणसमयसार:। तदेकदेशसमर्थो भावश्रुतं कार्यसमयसार:। तत: स्वाश्रितोपादेयभेदरत्नत्रयं कारणसमयसार:। तेषामेकत्वावस्था कार्यसमयसार: ...तत: स्वाश्रितधर्मध्यानं कारणसमयसार:। तत:प्रथमशुक्लध्यानं कार्यसमयसार:। ततो द्वितीयशुक्लध्यानाभिधानकं क्षीणकषायस्य द्विचरमसमयपर्यंतं कार्यपरंपरा कारणसमयसार:। एवमप्रमत्तादि क्षीणकषायपर्यतं समयं समयं प्रति कारणकार्यरूपं ज्ञातव्यम् ।</span> =<span class="HindiText">आगम के आधार पर सकल समयसार के अर्थ को ग्रहण करके, पराश्रितरूप से उपादेयभूत तथा वाच्यवाचक रूप से भेद को प्राप्त पंचपरमेष्ठी के वाचक शब्दों के आश्रित जो श्रुतज्ञान होता है वह कारणसमयसार है और भाव नमस्कार '''कार्यसमयसार''' है। .......</span></p><br> | ||
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Latest revision as of 14:03, 13 March 2023
नयचक्र बृहद्/368 चूलिका ‒सकलसमयसारार्थं परिगृह्य पराश्रितोपादेयवाच्यवाचकरूपं पंचपदाश्रितं श्रुतं कारणसमयसार:। भावनमस्काररूपं कार्यसमयसार:। तदाधारेण चतुर्विधधर्मध्यानं कारणसमयसार:। तदनंतरं प्रथमशुक्लध्यानं द्विचत्वारिंशभेदरूपं पराश्रितं कार्यसमयसार:। तदाश्रितभेदज्ञानं कारणसमयसार:। तदाधारीभूतं परान्मुखाकारस्वसंवेदनभेदरूपं कार्यसमयसार:। ...स्वाश्रितस्वरूपनिरूपकं भावनिराकाररूपं सम्यग्द्रव्यश्रुतं कारणसमयसार:। तदेकदेशसमर्थो भावश्रुतं कार्यसमयसार:। तत: स्वाश्रितोपादेयभेदरत्नत्रयं कारणसमयसार:। तेषामेकत्वावस्था कार्यसमयसार: ...तत: स्वाश्रितधर्मध्यानं कारणसमयसार:। तत:प्रथमशुक्लध्यानं कार्यसमयसार:। ततो द्वितीयशुक्लध्यानाभिधानकं क्षीणकषायस्य द्विचरमसमयपर्यंतं कार्यपरंपरा कारणसमयसार:। एवमप्रमत्तादि क्षीणकषायपर्यतं समयं समयं प्रति कारणकार्यरूपं ज्ञातव्यम् । =आगम के आधार पर सकल समयसार के अर्थ को ग्रहण करके, पराश्रितरूप से उपादेयभूत तथा वाच्यवाचक रूप से भेद को प्राप्त पंचपरमेष्ठी के वाचक शब्दों के आश्रित जो श्रुतज्ञान होता है वह कारणसमयसार है और भाव नमस्कार कार्यसमयसार है। .......
देखें समयसार ।