चंद्रचूल: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) भरतक्षेत्र के मलय राष्ट्र में रत्नपुर नगर के राजा प्रजापति और उसकी रानी गुणकांता का पुत्र । कुबेर सेठ की पुत्री कुबेरदत्ता को बल पूर्वक अपने अधीन करते हुए देख वैश्य समूह द्वारा शिकायत किये जाने पर राजा ने इसे मारने का आदेश दे दिया था किंतु मंत्री के परामर्श से यह संयमी हो गया । अंत में यह चतुर्विध आहार का त्याग करके आराधना पूर्वक मर गया और इसने देव पद पाया । <span class="GRef"> महापुराण 67.90-146 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरतक्षेत्र के मलय राष्ट्र में रत्नपुर नगर के राजा प्रजापति और उसकी रानी गुणकांता का पुत्र । कुबेर सेठ की पुत्री कुबेरदत्ता को बल पूर्वक अपने अधीन करते हुए देख वैश्य समूह द्वारा शिकायत किये जाने पर राजा ने इसे मारने का आदेश दे दिया था किंतु मंत्री के परामर्श से यह संयमी हो गया । अंत में यह चतुर्विध आहार का त्याग करके आराधना पूर्वक मर गया और इसने देव पद पाया । <span class="GRef"> महापुराण 67.90-146 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में नित्यालोक नगर का राजा । यह चित्रांगद का पिता था । इसकी रानी मनोहरी से इसके छ: युगल पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 71.249-252 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में नित्यालोक नगर का राजा । यह चित्रांगद का पिता था । इसकी रानी मनोहरी से इसके छ: युगल पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 71.249-252 </span></p> | ||
<p id="3">(3) वृषभदेव के सत्तरवें गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 43.64, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.67 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) वृषभदेव के सत्तरवें गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 43.64, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#67|हरिवंशपुराण - 12.67]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:42, 27 November 2023
(1) भरतक्षेत्र के मलय राष्ट्र में रत्नपुर नगर के राजा प्रजापति और उसकी रानी गुणकांता का पुत्र । कुबेर सेठ की पुत्री कुबेरदत्ता को बल पूर्वक अपने अधीन करते हुए देख वैश्य समूह द्वारा शिकायत किये जाने पर राजा ने इसे मारने का आदेश दे दिया था किंतु मंत्री के परामर्श से यह संयमी हो गया । अंत में यह चतुर्विध आहार का त्याग करके आराधना पूर्वक मर गया और इसने देव पद पाया । महापुराण 67.90-146
(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में नित्यालोक नगर का राजा । यह चित्रांगद का पिता था । इसकी रानी मनोहरी से इसके छ: युगल पुत्र हुए थे । महापुराण 71.249-252
(3) वृषभदेव के सत्तरवें गणधर । महापुराण 43.64, हरिवंशपुराण - 12.67