ख्याति: Difference between revisions
From जैनकोष
('<p class="HindiText">देखें - लोकैषणा। </p> <p><table class="NextPrevLinkTableF...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
< | <span class="GRef"> आत्मानुशासन/189 </span><span class="SanskritText">अधीत्यसकलं श्रुतं चिरमुपास्यघोरं तपो यदीच्छसि फलं तयोरिह हि लाभपूजादिकम् । छिनत्सि सुतपस्तरोः प्रसवमेव शून्याशयः - कथं समुपलप्स्य से सुरसमस्य पक्वंफलम्।189।</span> = <span class="HindiText">समस्त आगम का अभ्यास और चिरकाल तक घोर तपश्चरण करके भी यदि उन दोनों का फल तू यहाँ संपत्ति आदि का '''लाभ और प्रतिष्ठा''' आदि चाहता है, तो समझना चाहिए कि तू विवेकहीन होकर उस उत्कृष्ट तप रूप वृक्ष के फूल को ही नष्ट करता है। फिर ऐसी अवस्था में तू उसके सुंदर व सुस्वादु पके हुए रसीले फल को कैसे प्राप्त कर सकेगा ? नहीं कर सकेगा। <br /> | ||
< | <span class="HindiText">देखें [[ लोकेषणा ]]। | ||
[[Category:ख]] | <noinclude> | ||
[[ खेद | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ गंग | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: ख]] | |||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 14:37, 17 April 2023
आत्मानुशासन/189 अधीत्यसकलं श्रुतं चिरमुपास्यघोरं तपो यदीच्छसि फलं तयोरिह हि लाभपूजादिकम् । छिनत्सि सुतपस्तरोः प्रसवमेव शून्याशयः - कथं समुपलप्स्य से सुरसमस्य पक्वंफलम्।189। = समस्त आगम का अभ्यास और चिरकाल तक घोर तपश्चरण करके भी यदि उन दोनों का फल तू यहाँ संपत्ति आदि का लाभ और प्रतिष्ठा आदि चाहता है, तो समझना चाहिए कि तू विवेकहीन होकर उस उत्कृष्ट तप रूप वृक्ष के फूल को ही नष्ट करता है। फिर ऐसी अवस्था में तू उसके सुंदर व सुस्वादु पके हुए रसीले फल को कैसे प्राप्त कर सकेगा ? नहीं कर सकेगा।
देखें लोकेषणा ।