त्रिवर्ग: Difference between revisions
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<li | <li class="HindiText"><strong name="1" id="1">निक्षेप आदि त्रिवर्ग निर्देश</strong></span><strong><br> </strong><span class="GRef"> नयचक्र बृहद्/168 </span><span class="PrakritGatha">णिक्खेवणयपमाणा छद्दव्वं सुद्ध एव जो अप्पा। तक्कं पवयणणामा अज्झप्पं होइ हु तिवग्गं।168। </span>=<span class="HindiText">निक्षेप नय प्रमाण तो तर्क या युक्ति रूप प्रथम वर्ग है। छह द्रव्यों का निरूपण प्रवचन या आगम रूप दूसरा वर्ग है। और शुद्ध आत्मा अध्यात्म रूप तीसरा वर्ग है। </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2" id="2"> धर्म, अर्थ, कामरूप त्रिवर्ग का निर्देश</strong></span><br> <span class="GRef"> महापुराण/2/31-32 </span><span class="SanskritGatha">पश्य धर्मतरोरर्थ: फलं कामस्तु तद्रस:। सत्रिवर्गत्रयस्यास्य मूलं पुण्यकथाश्रुति:।31। धर्मादर्थश्च कामश्च स्वर्गश्चेत्यविमानत:। धर्म: कामार्थयो: सूतिरित्यायुष्मन्विनिश्चिनु।32। </span>=<span class="HindiText">हे श्रेणिक ! देखो, यह धर्म एक वृक्ष है। अर्थ उसका फल है और काम उसके फलों का रस है। धर्म, अर्थ, और काम तीनों को त्रिवर्ग कहते हैं, इस त्रिवर्ग की प्राप्ति का मूल कारण धर्म का सुनना है।31। तुम यह निश्चय करो कि धर्म से ही अर्थ, काम स्वर्ग की प्राप्ति होती है सचमुच यह धर्म ही अर्थ और काम का उत्पत्ति स्थान है।32।</span></li> | ||
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<div class="HindiText"> <p> धर्म, अर्थ और काम । <span class="GRef"> महापुराण 1.99, 2. 31-32, 4.165, 11.33, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 21.185 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> धर्म, अर्थ और काम । <span class="GRef"> महापुराण 1.99, 2. 31-32, 4.165, 11.33, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_21#185|हरिवंशपुराण - 21.185]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- निक्षेप आदि त्रिवर्ग निर्देश
नयचक्र बृहद्/168 णिक्खेवणयपमाणा छद्दव्वं सुद्ध एव जो अप्पा। तक्कं पवयणणामा अज्झप्पं होइ हु तिवग्गं।168। =निक्षेप नय प्रमाण तो तर्क या युक्ति रूप प्रथम वर्ग है। छह द्रव्यों का निरूपण प्रवचन या आगम रूप दूसरा वर्ग है। और शुद्ध आत्मा अध्यात्म रूप तीसरा वर्ग है। - धर्म, अर्थ, कामरूप त्रिवर्ग का निर्देश
महापुराण/2/31-32 पश्य धर्मतरोरर्थ: फलं कामस्तु तद्रस:। सत्रिवर्गत्रयस्यास्य मूलं पुण्यकथाश्रुति:।31। धर्मादर्थश्च कामश्च स्वर्गश्चेत्यविमानत:। धर्म: कामार्थयो: सूतिरित्यायुष्मन्विनिश्चिनु।32। =हे श्रेणिक ! देखो, यह धर्म एक वृक्ष है। अर्थ उसका फल है और काम उसके फलों का रस है। धर्म, अर्थ, और काम तीनों को त्रिवर्ग कहते हैं, इस त्रिवर्ग की प्राप्ति का मूल कारण धर्म का सुनना है।31। तुम यह निश्चय करो कि धर्म से ही अर्थ, काम स्वर्ग की प्राप्ति होती है सचमुच यह धर्म ही अर्थ और काम का उत्पत्ति स्थान है।32।
पुराणकोष से
धर्म, अर्थ और काम । महापुराण 1.99, 2. 31-32, 4.165, 11.33, हरिवंशपुराण - 21.185