विहारक्रिया: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> गर्भान्वयी त्रेपन क्रियाओं में इक्यावनवीं क्रिया । धर्मचक्र को आगे करके तीर्थंकरों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना विहारक्रिया कहलाती है । तीर्थंकर विहार करते समय आकाशमार्ग से चलते हैं । उनके चरणों के आगे और पीछे सात-सात तथा चरणों के नीचे एक इस प्रकार पंद्रह कमलों की रचना की जाती है । मंद-सुगंधित वायु बहती है और भूमि निष्कन्टक हो जाती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.62-63, 304, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.20-24 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> गर्भान्वयी त्रेपन क्रियाओं में इक्यावनवीं क्रिया ।<p> | ||
धर्मचक्र को आगे करके तीर्थंकरों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना विहारक्रिया कहलाती है । तीर्थंकर विहार करते समय आकाशमार्ग से चलते हैं । उनके चरणों के आगे और पीछे सात-सात तथा चरणों के नीचे एक इस प्रकार पंद्रह कमलों की रचना की जाती है । मंद-सुगंधित वायु बहती है और भूमि निष्कन्टक हो जाती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.62-63, 304, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#20|हरिवंशपुराण - 3.20-24]] </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
गर्भान्वयी त्रेपन क्रियाओं में इक्यावनवीं क्रिया ।
धर्मचक्र को आगे करके तीर्थंकरों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना विहारक्रिया कहलाती है । तीर्थंकर विहार करते समय आकाशमार्ग से चलते हैं । उनके चरणों के आगे और पीछे सात-सात तथा चरणों के नीचे एक इस प्रकार पंद्रह कमलों की रचना की जाती है । मंद-सुगंधित वायु बहती है और भूमि निष्कन्टक हो जाती है । महापुराण 38.62-63, 304, हरिवंशपुराण - 3.20-24