सकलभूषण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गूँजा नगर के राजा सिंहविक्रम और रानी श्री का पुत्र । इसकी आठ सौ रानियाँ थीं जिनमें किरणमाला प्रधान रानी थी । इसके सोते समय मामा के पुत्र हेमशिख का नाम उच्चारण करने से यह विरक्त हुआ और इसने दीक्षा ले ली । रानी साध्वी हो गयी और मरकर विद्युद्वक्त्रा नाम की राक्षसी हुई । इसने सकलभूषण के मुनि हो जाने पर मुनि अवस्था में अनेक उपसर्ग किये थे । आहार के समय भी उसने अंतराय किये । एक बार आहार देने वाली स्त्री का हार उसने इनके गले में डालकर इन्हें चोर घोषित किया । महेंद्रोदय उद्यान में प्रतिमायोग में विराजमान देखकर दिव्य स्त्रियों के रूप दिखाकर भी उपसर्ग किये । इनका मन इसके उपसर्गो से विचलित नहीं हुआ फलस्वरूप इन्हें केवलज्ञान प्रकट हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 104.103-117 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गूँजा नगर के राजा सिंहविक्रम और रानी श्री का पुत्र । इसकी आठ सौ रानियाँ थीं जिनमें किरणमाला प्रधान रानी थी । इसके सोते समय मामा के पुत्र हेमशिख का नाम उच्चारण करने से यह विरक्त हुआ और इसने दीक्षा ले ली । रानी साध्वी हो गयी और मरकर विद्युद्वक्त्रा नाम की राक्षसी हुई । इसने सकलभूषण के मुनि हो जाने पर मुनि अवस्था में अनेक उपसर्ग किये थे । आहार के समय भी उसने अंतराय किये । एक बार आहार देने वाली स्त्री का हार उसने इनके गले में डालकर इन्हें चोर घोषित किया । महेंद्रोदय उद्यान में प्रतिमायोग में विराजमान देखकर दिव्य स्त्रियों के रूप दिखाकर भी उपसर्ग किये । इनका मन इसके उपसर्गो से विचलित नहीं हुआ फलस्वरूप इन्हें केवलज्ञान प्रकट हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_104#103|पद्मपुराण - 104.103-117]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गूँजा नगर के राजा सिंहविक्रम और रानी श्री का पुत्र । इसकी आठ सौ रानियाँ थीं जिनमें किरणमाला प्रधान रानी थी । इसके सोते समय मामा के पुत्र हेमशिख का नाम उच्चारण करने से यह विरक्त हुआ और इसने दीक्षा ले ली । रानी साध्वी हो गयी और मरकर विद्युद्वक्त्रा नाम की राक्षसी हुई । इसने सकलभूषण के मुनि हो जाने पर मुनि अवस्था में अनेक उपसर्ग किये थे । आहार के समय भी उसने अंतराय किये । एक बार आहार देने वाली स्त्री का हार उसने इनके गले में डालकर इन्हें चोर घोषित किया । महेंद्रोदय उद्यान में प्रतिमायोग में विराजमान देखकर दिव्य स्त्रियों के रूप दिखाकर भी उपसर्ग किये । इनका मन इसके उपसर्गो से विचलित नहीं हुआ फलस्वरूप इन्हें केवलज्ञान प्रकट हुआ । पद्मपुराण - 104.103-117