स्वयंबुद्ध: Difference between revisions
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<span class="GRef"> महापुराण/ </span> | <span class="GRef"> महापुराण/सर्ग/श्लोक</span> यह राजा महाबल (ऋषभदेव का पूर्व का नवमा भव) का मंत्री था (4/191) इसने तीन मिथ्यादृष्टि मंत्रियों द्वारा मिथ्यावादों की स्थापना करने पर उनका खंडन कर आस्तिक्यभाव की स्थापना की (5/86)। एक समय मेरु की वंदनार्थ गया (5/161) वहाँ मुनियों से राजा की दसवें भव में मुक्ति जानकर हर्षित हुआ (5/198-200)। आयु का अंत जानकर राजा का समाधि पूर्वक मरण कराया। (5/225) अंत में राजा के वियोग से दीक्षा ग्रहण कर ली। तथा समाधिपूर्वक स्वर्ग में रत्नचूल देव हुआ (9/106)।</li> | ||
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विजयार्ध पर्वत पर स्थित अलकापुरी के राजा महाबल का चौथा मंत्री । इसने भूतवाद, विज्ञानवाद और शून्यवाद मिथ्यावादों का खंडन कर आस्तिक्यवाद का समर्थन किया था । सुमेरु की वंदना करते समय किसी मुनि से राजा महाबल की दसवें भव में मुक्ति जानकर यह हर्षित हुआ तथा इसने राजा का समाधिपूर्वक मरण कराया था । अंत में राजा के वियोग से इसने भी दीक्षा ले ली तथा यह समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर सौधर्म स्वर्ग के स्वयंप्रभ विमान में मणिचूल नामक देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 4.190-191, 5.50-86, 161, 200-201, 223-234, 248-250, 9.106-207 </span></p> | ||
<p id="2">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 113 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 113 </span></p> | ||
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सिद्धांतकोष से
- इस संबंधी विषय-देखें बुद्ध ।
- महापुराण/सर्ग/श्लोक यह राजा महाबल (ऋषभदेव का पूर्व का नवमा भव) का मंत्री था (4/191) इसने तीन मिथ्यादृष्टि मंत्रियों द्वारा मिथ्यावादों की स्थापना करने पर उनका खंडन कर आस्तिक्यभाव की स्थापना की (5/86)। एक समय मेरु की वंदनार्थ गया (5/161) वहाँ मुनियों से राजा की दसवें भव में मुक्ति जानकर हर्षित हुआ (5/198-200)। आयु का अंत जानकर राजा का समाधि पूर्वक मरण कराया। (5/225) अंत में राजा के वियोग से दीक्षा ग्रहण कर ली। तथा समाधिपूर्वक स्वर्ग में रत्नचूल देव हुआ (9/106)।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत पर स्थित अलकापुरी के राजा महाबल का चौथा मंत्री । इसने भूतवाद, विज्ञानवाद और शून्यवाद मिथ्यावादों का खंडन कर आस्तिक्यवाद का समर्थन किया था । सुमेरु की वंदना करते समय किसी मुनि से राजा महाबल की दसवें भव में मुक्ति जानकर यह हर्षित हुआ तथा इसने राजा का समाधिपूर्वक मरण कराया था । अंत में राजा के वियोग से इसने भी दीक्षा ले ली तथा यह समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर सौधर्म स्वर्ग के स्वयंप्रभ विमान में मणिचूल नामक देव हुआ । महापुराण 4.190-191, 5.50-86, 161, 200-201, 223-234, 248-250, 9.106-207
(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 113