पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 133 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>[रागो जस्स पसत्थो] राग जिसके प्रशस्त है, वीतराग परमात्म-द्रव्य से विलक्षण पंच-परमेष्ठी के प्रति निर्भर गुणानुराग रूप प्रशस्त धर्मानुराग, [अणुकंपा संसिदो य परिणामो] और अनुकम्पा से सहित परिणाम, दया सहित मन-वचन-काय के व्यापार-रूप शुभ परिणाम हैं, [चित्तम्हि णत्थि कलुसो] चित्त में कलुषता नहीं है, मन में क्रोधादि कलुष परिणाम नहीं है, [पुण्णं जीवस्स आसवदि] जिसके ये पूर्वोक्त तीन शुभ परिणाम हैं, उस जीव के द्रव्य-पुण्य-आस्रव का कारण-भूत भाव-पुण्य-आस्रव होता है, ऐसा सूत्र का अभिप्राय है ॥१४३॥</p> | <p><span class="SansWord">[रागो जस्स पसत्थो]</span> राग जिसके प्रशस्त है, वीतराग परमात्म-द्रव्य से विलक्षण पंच-परमेष्ठी के प्रति निर्भर गुणानुराग रूप प्रशस्त धर्मानुराग, <span class="SansWord">[अणुकंपा संसिदो य परिणामो]</span> और अनुकम्पा से सहित परिणाम, दया सहित मन-वचन-काय के व्यापार-रूप शुभ परिणाम हैं, <span class="SansWord">[चित्तम्हि णत्थि कलुसो]</span> चित्त में कलुषता नहीं है, मन में क्रोधादि कलुष परिणाम नहीं है, <span class="SansWord">[पुण्णं जीवस्स आसवदि]</span> जिसके ये पूर्वोक्त तीन शुभ परिणाम हैं, उस जीव के द्रव्य-पुण्य-आस्रव का कारण-भूत भाव-पुण्य-आस्रव होता है, ऐसा सूत्र का अभिप्राय है ॥१४३॥</p> | ||
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<p>इस प्रकार शुभास्रव में पहली गाथा पूर्ण हुई ।</p> | <p>इस प्रकार शुभास्रव में पहली गाथा पूर्ण हुई ।</p> | ||
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Latest revision as of 13:16, 30 June 2023
[रागो जस्स पसत्थो] राग जिसके प्रशस्त है, वीतराग परमात्म-द्रव्य से विलक्षण पंच-परमेष्ठी के प्रति निर्भर गुणानुराग रूप प्रशस्त धर्मानुराग, [अणुकंपा संसिदो य परिणामो] और अनुकम्पा से सहित परिणाम, दया सहित मन-वचन-काय के व्यापार-रूप शुभ परिणाम हैं, [चित्तम्हि णत्थि कलुसो] चित्त में कलुषता नहीं है, मन में क्रोधादि कलुष परिणाम नहीं है, [पुण्णं जीवस्स आसवदि] जिसके ये पूर्वोक्त तीन शुभ परिणाम हैं, उस जीव के द्रव्य-पुण्य-आस्रव का कारण-भूत भाव-पुण्य-आस्रव होता है, ऐसा सूत्र का अभिप्राय है ॥१४३॥
इस प्रकार शुभास्रव में पहली गाथा पूर्ण हुई ।