पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 155: Difference between revisions
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<p>आसवदि जेण पुण्णं पावं वा अप्पणोथ भावेण । (155)</p> | <p>आसवदि जेण पुण्णं पावं वा अप्पणोथ भावेण । (155)</p> | ||
<p>सो तेण परचरित्तो हवदित्ति जिणा परूवेंति ॥165॥</p> | <p>सो तेण परचरित्तो हवदित्ति जिणा परूवेंति ॥165॥</p> | ||
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Latest revision as of 10:55, 21 August 2021
आसवदि जेण पुण्णं पावं वा अप्पणोथ भावेण । (155)
सो तेण परचरित्तो हवदित्ति जिणा परूवेंति ॥165॥