पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 154: Difference between revisions
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<p>जो परदव्वम्हि सुहं असुहं रायेण कुणदि जदि भावं । (154)</p> | <p>जो परदव्वम्हि सुहं असुहं रायेण कुणदि जदि भावं । (154)</p> | ||
<p>सो सगचरित्तभट्ठो परचरियचरो हवदि जीवो ॥164॥</p> | <p>सो सगचरित्तभट्ठो परचरियचरो हवदि जीवो ॥164॥</p> | ||
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Latest revision as of 10:55, 21 August 2021
जो परदव्वम्हि सुहं असुहं रायेण कुणदि जदि भावं । (154)
सो सगचरित्तभट्ठो परचरियचरो हवदि जीवो ॥164॥