पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 34 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब सिद्धों को अतीत शरीर प्रमाण आकाश में व्यापक होने से शुद्ध जीवत्व तथा व्यवहार की अपेक्षा भूतपूर्व न्याय से (भूतपूर्व प्रज्ञापन नैगमनय से) कुछ कम अन्तिम शरीर प्रमाण स्थापित करते हैं--</p> | <p>अब सिद्धों को अतीत शरीर प्रमाण आकाश में व्यापक होने से शुद्ध जीवत्व तथा व्यवहार की अपेक्षा भूतपूर्व न्याय से (भूतपूर्व प्रज्ञापन नैगमनय से) कुछ कम अन्तिम शरीर प्रमाण स्थापित करते हैं--</p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="SansWord">[जेसिं जीवसहाओ णत्थि]</span> जिनके कर्मजनित द्रव्य प्राण-भाव-प्राण-रूप जीव-स्वभाव नहीं है, <span class="SansWord">[ते होंति सिद्धा]</span> वे सिद्ध हैं, इसप्रकार सम्बन्ध है । यदि वहाँ द्रव्य-भाव-प्राण नहीं हैं तो बौद्ध-मत के समान जीव का सर्वथा अभाव होगा -- ऐसी आशंका कर उत्तर देते हैं -- <span class="SansWord">[अभावो य सव्वहा तत्थ णत्थि]</span> शुद्ध सत्ता, चैतन्य, ज्ञानादि-रूप शुद्ध भाव-प्राण सहित होने से उस सिद्ध-अवस्था में जीव का सर्वथा अभाव भी नहीं है । वे सिद्ध कैसे हैं ? <span class="SansWord">[भिण्णदेहा]</span> अशरीरी शुद्धात्मा से विपरीत शरीर की उत्पत्ति के कारणभूत मन-वचन-काययोग और क्रोधादि कषायें नहीं हैं -- इसप्रकार भिन्न देह / अशरीर जानना चाहिए । वे और कैसे हैं ? <span class="SansWord">[वचिगोयरमतीदा]</span> सांसारिक द्रव्य-प्राण-भाव-प्राण से रहित होने पर भी विजयवान हैं, प्रतापवान हैं, इस हेतु से उनकी महिमा स्वभाव वचनगोचरता से रहित / वचनातीत है; अथवा वे सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से या उसके अन्तर्गत अनन्त गुणों से सहित हैं, उस कारण वचनगोचरातीत हैं ।</p> | ||
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<p>अब यहाँ जैसे सौगत / बौद्ध पर्याय रूप से पदार्थों की क्षणिकता देखकर अतिव्याप्तिकर (सर्वथा उसे ही मानकर) द्रव्य-रूप से भी क्षणिकता मान लेते हैं; उसीप्रकार इन्द्रिय आदि दश प्राण सहित अशुद्ध-जीव का अभाव देखकर मोक्ष अवस्था में केवल-ज्ञानादि अनन्त-गुण सहित शुद्ध जीव का भी अभाव मान लेते हैं -- यह भावार्थ हैं ॥३५॥</p> | <p>अब यहाँ जैसे सौगत / बौद्ध पर्याय रूप से पदार्थों की क्षणिकता देखकर अतिव्याप्तिकर (सर्वथा उसे ही मानकर) द्रव्य-रूप से भी क्षणिकता मान लेते हैं; उसीप्रकार इन्द्रिय आदि दश प्राण सहित अशुद्ध-जीव का अभाव देखकर मोक्ष अवस्था में केवल-ज्ञानादि अनन्त-गुण सहित शुद्ध जीव का भी अभाव मान लेते हैं -- यह भावार्थ हैं ॥३५॥</p> | ||
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Latest revision as of 13:16, 30 June 2023
अब सिद्धों को अतीत शरीर प्रमाण आकाश में व्यापक होने से शुद्ध जीवत्व तथा व्यवहार की अपेक्षा भूतपूर्व न्याय से (भूतपूर्व प्रज्ञापन नैगमनय से) कुछ कम अन्तिम शरीर प्रमाण स्थापित करते हैं--
[जेसिं जीवसहाओ णत्थि] जिनके कर्मजनित द्रव्य प्राण-भाव-प्राण-रूप जीव-स्वभाव नहीं है, [ते होंति सिद्धा] वे सिद्ध हैं, इसप्रकार सम्बन्ध है । यदि वहाँ द्रव्य-भाव-प्राण नहीं हैं तो बौद्ध-मत के समान जीव का सर्वथा अभाव होगा -- ऐसी आशंका कर उत्तर देते हैं -- [अभावो य सव्वहा तत्थ णत्थि] शुद्ध सत्ता, चैतन्य, ज्ञानादि-रूप शुद्ध भाव-प्राण सहित होने से उस सिद्ध-अवस्था में जीव का सर्वथा अभाव भी नहीं है । वे सिद्ध कैसे हैं ? [भिण्णदेहा] अशरीरी शुद्धात्मा से विपरीत शरीर की उत्पत्ति के कारणभूत मन-वचन-काययोग और क्रोधादि कषायें नहीं हैं -- इसप्रकार भिन्न देह / अशरीर जानना चाहिए । वे और कैसे हैं ? [वचिगोयरमतीदा] सांसारिक द्रव्य-प्राण-भाव-प्राण से रहित होने पर भी विजयवान हैं, प्रतापवान हैं, इस हेतु से उनकी महिमा स्वभाव वचनगोचरता से रहित / वचनातीत है; अथवा वे सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से या उसके अन्तर्गत अनन्त गुणों से सहित हैं, उस कारण वचनगोचरातीत हैं ।
अब यहाँ जैसे सौगत / बौद्ध पर्याय रूप से पदार्थों की क्षणिकता देखकर अतिव्याप्तिकर (सर्वथा उसे ही मानकर) द्रव्य-रूप से भी क्षणिकता मान लेते हैं; उसीप्रकार इन्द्रिय आदि दश प्राण सहित अशुद्ध-जीव का अभाव देखकर मोक्ष अवस्था में केवल-ज्ञानादि अनन्त-गुण सहित शुद्ध जीव का भी अभाव मान लेते हैं -- यह भावार्थ हैं ॥३५॥