क्षेमकीर्ति: Difference between revisions
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2. यश:कीर्ति भट्टारक के शिष्य थे। इनके समय में ही पं. राजमल्लजी ने अपनी लाटी संहिता पूर्ण की थी। समय वि. 1641 ई.1584। <span class="GRef">( समयसार/ कलश टीका/प्रस्तावना 5 ब्र.शीतल)</span>। | |||
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1. काष्ठासंघ की गुर्वावली के अनुसार (देखें इतिहास ) यह यश:कीर्ति के शिष्य थे। समय–वि. 1055 ई. 998 (प्रद्युम्नचरित्र/प्रस्तावना प्रेमीजी); ( लाटी संहिता/1/64-70 )। देखें इतिहास - 7.9।
2. यश:कीर्ति भट्टारक के शिष्य थे। इनके समय में ही पं. राजमल्लजी ने अपनी लाटी संहिता पूर्ण की थी। समय वि. 1641 ई.1584। ( समयसार/ कलश टीका/प्रस्तावना 5 ब्र.शीतल)।