गणपोषणकाल: Difference between revisions
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<span class="GRef">पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/173/11</span> <span class="SanskritText">यदा कोऽप्यासन्नभव्यो भेदाभेदरत्नत्रयात्मकमाचार्यं प्राप्यात्माराधनार्थं बाह्याभ्यंतरपरिग्रहपरित्यागं ......शिक्षानंतरं निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गे स्थित्वा तदर्थिनां भव्यप्राणिगणानां परमात्मोपदेशेन यदा पोषणं करोति स च '''गणपोषणकाल:''', ......।=</span><span class="HindiText">जब कोई आसन्न भव्य जीव भेदाभेद रत्नत्रयात्मक आचार्य को प्राप्त करके, ...... शिक्षा के पश्चात् निश्चयव्यवहार मोक्षमार्ग में स्थित होकर उसके जिज्ञासु भव्य प्राणी गणों को परमात्मोपदेश से पोषण करता है वह '''गणपोषण काल''' है। .......। </span> | |||
<span class="GRef">''पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/173/254/8''</span> <span class="SanskritText">यदा कोऽपि चतुर्विधाराधनाभिमुख: सन् पंचाचारोपेतमाचार्यं प्राप्योभयपरिग्रहरहितो .....शिक्षानंतरं चरणकरणकथितार्थानुष्ठानेन व्याख्यानेन च पंचभावनासहित: सन् शिष्यगणपोषणं करोति तदा '''गणपोषणकाल:'''।.........।</span>=<span class="HindiText">जब कोई मुमुक्षु चतुर्विध आराधना के अभिमुख हुआ, पंचाचार से युक्त आचार्य को प्राप्त करके उभय परिग्रह से रहित होकर जिन दीक्षा ग्रहण करता है ....... शिक्षा के पश्चात् चरणानुयोग में कथित अनुष्ठान और उसके व्याख्यान के द्वारा पंचभावना सहित होता हुआ जब शिष्यगण को पोषण करता है तब <strong>गणपोषण काल</strong> है।........</span> | |||
<span class="HindiText">देखें [[ काल#1 | काल - 1]]।</span> | |||
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[[Category: ग]] | |||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 11:40, 18 April 2023
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/173/11 यदा कोऽप्यासन्नभव्यो भेदाभेदरत्नत्रयात्मकमाचार्यं प्राप्यात्माराधनार्थं बाह्याभ्यंतरपरिग्रहपरित्यागं ......शिक्षानंतरं निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गे स्थित्वा तदर्थिनां भव्यप्राणिगणानां परमात्मोपदेशेन यदा पोषणं करोति स च गणपोषणकाल:, ......।=जब कोई आसन्न भव्य जीव भेदाभेद रत्नत्रयात्मक आचार्य को प्राप्त करके, ...... शिक्षा के पश्चात् निश्चयव्यवहार मोक्षमार्ग में स्थित होकर उसके जिज्ञासु भव्य प्राणी गणों को परमात्मोपदेश से पोषण करता है वह गणपोषण काल है। .......।
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/173/254/8 यदा कोऽपि चतुर्विधाराधनाभिमुख: सन् पंचाचारोपेतमाचार्यं प्राप्योभयपरिग्रहरहितो .....शिक्षानंतरं चरणकरणकथितार्थानुष्ठानेन व्याख्यानेन च पंचभावनासहित: सन् शिष्यगणपोषणं करोति तदा गणपोषणकाल:।.........।=जब कोई मुमुक्षु चतुर्विध आराधना के अभिमुख हुआ, पंचाचार से युक्त आचार्य को प्राप्त करके उभय परिग्रह से रहित होकर जिन दीक्षा ग्रहण करता है ....... शिक्षा के पश्चात् चरणानुयोग में कथित अनुष्ठान और उसके व्याख्यान के द्वारा पंचभावना सहित होता हुआ जब शिष्यगण को पोषण करता है तब गणपोषण काल है।........
देखें काल - 1।