करणानुयोग: Difference between revisions
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<p class="HindiText">= लोक अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट करनेवाले '''करणानुयोग''' को सम्यग्ज्ञान जानता है। </p> | |||
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Latest revision as of 17:25, 11 February 2023
सिद्धांतकोष से
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 44
लोकालोकविभक्तेर्युगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनां च। आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगं च ॥44॥
= लोक अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट करनेवाले करणानुयोग को सम्यग्ज्ञान जानता है।
देखें अनुयोग ।
पुराणकोष से
श्रुतस्कंध के चार महाधिकारों मे द्वितीय महाधिकार । इसमें तीनों लोकों का वर्णन रहता है । महापुराण 2.99