घोर पराक्रम: Difference between revisions
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<span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०५६-१०५७</span><p class="PrakritText"> णिरुवमवड्ढंततवा तिहुवणसंहरणकरसत्तिजुत्ता। कंटयसिलग्गिपव्वयधूमुक्कापहुदिवरिसणसमत्था ।१०५६। सहस त्ति सयलसायरसलिलुप्पीलस्स सोसणसमत्था। जायंति जीए मुणिणो घोरपरक्कमतव त्ति सा रिद्धी ।१०५७।</p> <p class="HindiText">= जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि जन अनुपम एवं वृद्धिंगत तप से सहित, तीनों लोकों के संहार करने की शक्ति से युक्त; कंटक, शिला, अग्नि, पर्वत, धुआँ तथा उल्का आदि के बरसाने में समर्थ; और सहसा संपूर्ण समुद्र के सलिल समूह के सुखाने की शक्ति से भी संयुक्त होते हैं वह '''घोर-पराक्रम-तप ऋद्धि''' है ।१०५६-१०५७। <span class="GRef">(राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०३/१६)</span>; <span class="GRef">(धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,२७/९३/२)</span>; <span class="GRef">(चारित्रसार पृष्ठ संख्या २२३/१)</span></p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ ऋद्धि#5 | ऋद्धि - 5.3]]।</p> | |||
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Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०५६-१०५७
णिरुवमवड्ढंततवा तिहुवणसंहरणकरसत्तिजुत्ता। कंटयसिलग्गिपव्वयधूमुक्कापहुदिवरिसणसमत्था ।१०५६। सहस त्ति सयलसायरसलिलुप्पीलस्स सोसणसमत्था। जायंति जीए मुणिणो घोरपरक्कमतव त्ति सा रिद्धी ।१०५७।
= जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि जन अनुपम एवं वृद्धिंगत तप से सहित, तीनों लोकों के संहार करने की शक्ति से युक्त; कंटक, शिला, अग्नि, पर्वत, धुआँ तथा उल्का आदि के बरसाने में समर्थ; और सहसा संपूर्ण समुद्र के सलिल समूह के सुखाने की शक्ति से भी संयुक्त होते हैं वह घोर-पराक्रम-तप ऋद्धि है ।१०५६-१०५७। (राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०३/१६); (धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,२७/९३/२); (चारित्रसार पृष्ठ संख्या २२३/१)
देखें ऋद्धि - 5.3।