उपासकाध्ययन: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> निखिल श्रावकाचार के विवेचक द्वादशांग श्रुत का सातवाँ अंग । इसमें ग्यारह स्थानों (प्रतिमाओं) के उपासकों की क्रियाओं का निरूपण किया गया है । इसमें ग्यारह लाख छप्पन हजार पद है । <span class="GRef"> महापुराण 34.133, 141, 63. 300-301, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 37 </span>देखें [[ अंग ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> निखिल श्रावकाचार के विवेचक द्वादशांग श्रुत का सातवाँ अंग । इसमें ग्यारह स्थानों (प्रतिमाओं) के उपासकों की क्रियाओं का निरूपण किया गया है । इसमें ग्यारह लाख छप्पन हजार पद है । <span class="GRef"> महापुराण 34.133, 141, 63. 300-301, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#37|हरिवंशपुराण - 10.37]] </span>देखें [[ अंग ]]</p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
द्रव्य श्रुतज्ञान का सातवाँ अंग
राजवार्तिक/1/20/12/-72/28 से 74/9 तक आचारे चर्याविधानं.... उपासकाध्ययने श्रावकधर्मलक्षणम् ।...। =आचारांग में चर्या का विधान आठ शुद्धि, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि रूप से वर्णित है। ....उपासकाध्ययन में श्रावकधर्म का विशेष विवेचन किया गया है। ....
-अधिक जानकारी के लिये देखें श्रुतज्ञान - III
पुराणकोष से
निखिल श्रावकाचार के विवेचक द्वादशांग श्रुत का सातवाँ अंग । इसमें ग्यारह स्थानों (प्रतिमाओं) के उपासकों की क्रियाओं का निरूपण किया गया है । इसमें ग्यारह लाख छप्पन हजार पद है । महापुराण 34.133, 141, 63. 300-301, हरिवंशपुराण - 10.37 देखें अंग