अश्व: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
(18 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p id="1" class="HindiText"> | |||
2 | <p class="HindiText"> (1) चक्रवर्ती के 14 रत्नों में से एक '''अश्व रत्न''' है। - विशेष जानकारी के लिए देखें [[ द्वादश_चक्रवर्ती_निर्देश | द्वादश चक्रवर्ती निर्देश]] </span></p> | ||
3 | <p id="2" class="HindiText"> | ||
<p class="HindiText"> (2) अश्विनी के अधिपति देवता का नाम '''अश्व नक्षत्र''' है। - विशेष जानकारी के लिए देखें [[ नक्षत्र ]] </span></p> | |||
<p id="3" class="HindiText"> | |||
<p class="HindiText"> (3) लौकांतिक देवों का एकभेद '''अश्व''' भी है। - विशेष जानकारी के लिए देखें [[ लौकांतिक देव]] </span></p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ अश्मगर्भ | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ अश्मगर्भ | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ अश्वकंठ | अगला पृष्ठ ]] | [[ अश्वकंठ | अगला पृष्ठ ]] | ||
Line 14: | Line 18: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) भरतेश के चौदह रत्नों में एक चेतन रत्न । <span class="GRef"> महापुराण 37.83-86 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरतेश के चौदह रत्नों में एक चेतन रत्न । <span class="GRef"> [[ महापुराण 37.83-86 ]]; </span></p> | ||
<p id="2">(2) पुत्री को दिये जाने वाले दहेज का अंग । <span class="GRef"> महापुराण 8.36 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) पुत्री को दिये जाने वाले दहेज का अंग । <span class="GRef">[[ महापुराण 8.36 ]]; </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
(1) चक्रवर्ती के 14 रत्नों में से एक अश्व रत्न है। - विशेष जानकारी के लिए देखें द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
(2) अश्विनी के अधिपति देवता का नाम अश्व नक्षत्र है। - विशेष जानकारी के लिए देखें नक्षत्र
(3) लौकांतिक देवों का एकभेद अश्व भी है। - विशेष जानकारी के लिए देखें लौकांतिक देव
पुराणकोष से
(1) भरतेश के चौदह रत्नों में एक चेतन रत्न । महापुराण 37.83-86 ;
(2) पुत्री को दिये जाने वाले दहेज का अंग । महापुराण 8.36 ;