एकरात्रि प्रतिमा: Difference between revisions
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<span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 403/595/7</span> <p class="SanskritText">एकरात्रिभवा भिक्षुप्रतिमा निरूप्यते। उपवासत्रयं कृत्वा चतुर्थ्यां रात्रौ ग्रामनगरादेर्बहिर्देशे श्मशाने वा प्राङ्मुखः उदङ्मुखश्चैत्याभिमुखो वा भूत्वा चतुरंगुलमात्रपदांतरो नासिकाग्रदृष्टिस्त्यक्तस्तिष्ठेत्। सुष्ठु प्रणिहित चित्तः चतुर्विधोपसर्गसहः न चलेन्न पतेत् यावत्सूर्य उदेति।</p> | |||
<p class="HindiText">= तीन उपवास करनेके अनंतर चौथी | <p class="HindiText">= तीन उपवास करनेके अनंतर चौथी रात्रि में ग्राम-नगरादिक के बाह्य प्रदेश में अथवा श्मशान में, पूर्वदिशा, उत्तर दिशा अथवा चैत्य (प्रतिमा) के सन्मुख मुख करके दोनों चरणों में चार अंगुल प्रमाण का अंतर रखकर नासिका के अग्रभाग पर वह यति अपनी दृष्टि निश्चल करता है। शरीर पर का ममत्व छोड़ देता है, अर्थात् कायोत्सर्ग करता हुआ मन को एकाग्र करता है। देव, मनुष्य, तिर्यंच व अचेतन इन द्वारा किया हुआ चार प्रकार उपसर्ग सहन करता है। वह मुनि भय से आगे गमन करता नहीं और नीचे गिरता भी नहीं। सूर्योदय होने तक वहाँ ही स्थित रहता है। यह एकरात्रि प्रतिमा कुशल है।</p> | ||
Latest revision as of 10:57, 4 February 2023
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 403/595/7
एकरात्रिभवा भिक्षुप्रतिमा निरूप्यते। उपवासत्रयं कृत्वा चतुर्थ्यां रात्रौ ग्रामनगरादेर्बहिर्देशे श्मशाने वा प्राङ्मुखः उदङ्मुखश्चैत्याभिमुखो वा भूत्वा चतुरंगुलमात्रपदांतरो नासिकाग्रदृष्टिस्त्यक्तस्तिष्ठेत्। सुष्ठु प्रणिहित चित्तः चतुर्विधोपसर्गसहः न चलेन्न पतेत् यावत्सूर्य उदेति।
= तीन उपवास करनेके अनंतर चौथी रात्रि में ग्राम-नगरादिक के बाह्य प्रदेश में अथवा श्मशान में, पूर्वदिशा, उत्तर दिशा अथवा चैत्य (प्रतिमा) के सन्मुख मुख करके दोनों चरणों में चार अंगुल प्रमाण का अंतर रखकर नासिका के अग्रभाग पर वह यति अपनी दृष्टि निश्चल करता है। शरीर पर का ममत्व छोड़ देता है, अर्थात् कायोत्सर्ग करता हुआ मन को एकाग्र करता है। देव, मनुष्य, तिर्यंच व अचेतन इन द्वारा किया हुआ चार प्रकार उपसर्ग सहन करता है। वह मुनि भय से आगे गमन करता नहीं और नीचे गिरता भी नहीं। सूर्योदय होने तक वहाँ ही स्थित रहता है। यह एकरात्रि प्रतिमा कुशल है।